“पावन छंद”
विधान~ [भगण नगण जगण जगण सगण ] *(211 111 12, 1 121 112)*, 15वर्ण, 4 चरण,(यति 8-7), दो-दो चरण समतुकांत
माखन महक रहा, मन में ललक है
मोहन रहत कहाँ, घनश्याम चित है।।
कोटिन जतन कियो, रसना रस भरी
माधव मनन हियो, नयना तर वरी।।
पावन जमुन जला, बसुदेव डगरी
गोकुल गमन कियो, मथुरा च नगरी।।
सोवत सकल प्रजा, नयना अनुसरे
टूटत नगर प्रथा, बिधना अवतरे।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी