व्यंग्य : क्या यही होती है रीढ़विहीनता की स्थिति
“और कितना इंतजार करवायेंगे,यदि साहब की दूसरी मीटिंग थी तो इसे पोस्पोंड कर देना था ,” चोपड़ा साहब ने नाराजगी व्यक्त करते हुए पूछा .मैंने मिमियाते हुए अंदाज में कहा –“सर ,साहब से मेरी बात हुई है ,अभी मीटिंग चल रही है,शीघ्र ही मीटिंग ख़त्म कर पहुँचने का कहा है”.
“अरे,यह क्या बात हुई! हमें एक घंटे से बैठा रखा है .हम भी विभागाध्यक्ष हैं ,हमारी डिग्निटी और डेकोरम का भी तो ख्याल रखा जाना चाहिए .”तीन-चार अन्य विभागाध्यक्षों ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाई और तेज स्वर में उनकी ही बात को रिपीट किया .
मैं अपनी झेंप मिटाते हुए नतमस्तक सा होता हुआ गिड़गिड़ाने की स्वर मुद्रा मैं अनुनय विनय करने लगा –“सर,बस दस पंद्रह मिनिट और इंतजार कर लेते हैं ,तब तक वे आ ही जायेंगे .”
चोपड़ा साहब ने तुनकते हुए कहा-“ठीक हे ,वे तो आ ही जायेंगे ,लेकिन हम लोग तो मीटिंग की कार्यवाही प्रारम्भ कर देते हैं .सबसे पहले तो आप यह बताइये कि आपकी तैयारी क्या है? आप जब सम्पूर्ण प्रशासकीय और वित्तीय अधिकारों के केन्द्रीयकरण का निर्णय लेने जा रहे हैं तब आपको बताना होगा कि यह कैसे होगा ? हम तो तैयार हैं .हम अपना मूल काम ही करना चाहेंगे .हमें वैसे भी बाबूगिरी के काम करने का शौक नहीं हैं .आपने योजना के क्रियान्वयन हेतु क्या स्ट्रेटजी बनायी है .”
सभी विभागों से कुछ प्रमुख कर्मचारी तथा आवश्यक संसाधन लेकर साहब के निर्देशानुसार इसी माह से कार्य प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है.” मैंने अपना मंतव्य स्पष्ट करना चाहा .
बीच में ही टोकते हुए शर्माजी ने कहा –“यह कैसे संभव है! विभागों में अनेकानेक कार्य हैं .वैसे भी हम काफी समय से अमला बढ़ाने की मांग कर रहे हैं .अभी तक नए पदों का सृजन नहीं किया गया है.ऐसे में वर्त्तमान अमले से हम कैसे काम ले रहें हैं ,यह हम ही जानते हैं.वर्तमान में उपलब्ध अमले से कर्मचारी देना संभव नहीं होगा .”
अय्यर साहब ने भी उनकी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा कि-“ स्टाफ नहीं है और इस कारण हमेँ स्वयं को भी बाबूगिरी के काम करना पड़ रहे हैं .”
अन्य विभागाध्यक्ष भी लगभग चिल्लाते हुए बोले कि _”हम लोगों में से कोई भी इस नई प्रक्रिया एवं नई व्यवस्था के लिए सहमत नहीं हैं.उनका यह कहना हुआ तो मैं थोड़ा सहम सा गया और बोला _’यह निर्णय मेरा नहीं है.मैं तो परामर्श ही दे सकता हूँ.मानना न मानना बॉस के विवेक पर निर्भर करता है.मैंने तो निर्णय लिए जाने के पहले ही बॉस को बता दिया था कि योजना के क्रियान्वयन के पूर्व आवश्यक संसाधन उपलब्ध कराना होंगे लेकिन वे तो इसी माह से उसे क्रियान्वित करने पर अड़े हुए हैं.अभी बॉस आने ही वाले हैं ,आप उनसे बात कर लीजिए.
चोपड़ा साहब को मेरी यह बात नागवार गुज़री ,उनके अहम् को भी शायद ठेस पहूंची थी क्योंकि बॉस की पदस्थापना के पूर्व तक वे प्रभारी थे और जोड़ तोड़ कर लम्बे समय तक उन्होंने किसी की पदस्थापना भी नहीं होने दी. उन्हें पूरी उम्मीद थी कि उस पद पर वे ही काबिज होंगे लेकिन जोड़ तोड़ में माहिर बड़े साहब कहाँ पीछे रहने वाले थे .जैसे परीक्षा में कुछ अंकों से पिछड़ने पर मेरिट में टॉप करने से वंचित रह जाते हैं ठीक उसी तरह से चोपड़ा साहब जुगाड़ यानि सेटिंग करने में थोड़ा पिछड़ गए.मलाईदार जगहों के लिए काम्पीटिशन भी तो अधिक होता है!खैर जो भी हो ,वे इन्हीं वजहों से अपने आप को कमतर नहीं समझते.अतः बड़े ही उलाहना भरे स्वर में बोले _”ठीक है आप कर भी क्या सकते हो.बॉस को आने दो उन्ही से बात करेंगे.”
मुझे अपमानित होते देख कुछ विभागाध्यक्ष जिनके विभाग स्वयं घाटे में चल रहे थे और अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे थे ,योजना के समर्थन में बोलने उठ खड़े हुए तो चोपड़ा साहब ने उन्हें डपटते हुए कहा _”क्या आप अपने अमले में से कर्मचारी और अन्य संसाधन उपलब्ध करा देंगे !और यदि करवा सकते हैं तो फिर योजना क्रियान्वित करना चाहें तो करें लेकिन जब तक नियमों में संशोधन नहीं हो जाता ,हम लोगों में से कोई भी सहमत नहीं होगा.क्यों भाई क्या कहते हैं आप लोग.”
सभी ने सहमती में सर हिलाया.मैनें अपने असिस्टेंट की और देखा तो वह मुस्कराते हुए धीमे से मेरे कान के पास फुसफुसाया_”सर,चिंता मत करो ,ये सब रीढ़विहीन लोग हैं ,थोड़ा सा इंतजार कर लें.”
इसी बीच बड़े साहब ने धड़धडाते हुए मीटिंग हाल में प्रवेश किया ,सभी ने खड़े होकर अभिवादन किया .साहब ने अपनी सीट संभाली और मेरी और मुखातिब हुए तथा पूछा “_क्या सभी को योजना समझा दी गई है?मेरे कहने के पूर्व ही चोपड़ा साहब बोल उठे _”सर प्लान तो समझ लिया है लेकिन इसका क्रियान्वयन यदिआगामी वित्तीय वर्ष से हो तो बेहतर होगा तब तक नियमों में भी संशोधन हो जाएगा और……
उनकी बात को बीच में ही काटते हुए बॉस बोले _”नहीं ,निर्णय तो हो चुका है,योजना तत्काल प्रभाव से लागू होगी ,औपचारिकताऐ बाद में भी पूरी होती रहेंगी.आपके और कोई सुझाव हो तो कहें.
चोपड़ा साहब ने मौन रहना ही ठीक समझा और सभी के साथ समवेत स्वर में बॉस की बात का समर्थन किया और कहा कि _”इससे अच्छा तो कुछ हो ही नहीं सकता सर “.सभी जानते थे कि यह बॉस का आदेश ही है और खिलाफत करने का मतलब उनकी वक्रदृष्टि का प्रकोप झेलने के लिए तैयार होना होगा .शायद इसके लिए कोई तैयार नहीं था .कुछ देर पहले तक विरोध करने वाले सभी के आश्चर्य के साथ मैं चेहरे देख रहा था और मेरा असिस्टेंट व्यंग्यभरी मुस्कान के साथ मेरी और देख रहा था ।
— डा प्रदीप उपाध्याय