कुण्डलिया
कुण्डलिया
*
१-
सावन आया झूम के ,महक उठे वन बाग ।
हर्षित दादुर मोर सब ,झींगुर गायें राग ।
झींगुर गायें राग ,चली पुरवा मस्तानी ।
धरती के परिधान हो गये सारे धानी ।
कहैं ‘दिवाकर’ हाय! दूर हैं जिनके साजन ।
उनके उर पतझार,आँख से बरसे सावन
२-
आया न प्रियतम मेरा ,जाइ बसा परदेश ।
ऐ बादल ! कहना मेरे नैनों का संदेश ।
नयनों का संदेश ,बिलखते उर की बातें ।
शूल सरीखी चुभे मुझे ये काली रातें ।
उनसे कहना मेघ! अकेली उनकी छाया ।
आ जाओ भरतार ,देश मे सावन आया ।
© डा. दिवाकर दत्त त्रिपाठी