मन के तीर बड़ी हलचल
मेरे मन के तीर बड़ी हलचल….
तंगहाल हो रही डगर नित आशाओं की
बदल रहा जीवन क्षण क्षण परिभाषा भी
जगे स्वप्न आँखों निशि दिन अगिन रंग के
खेले खेल नींद नयन को पग पग देते छल …..
ढलक चिढ़ाए मुँह दर्पण लख बेबाक जवानी
उथलाती तन रही उतर हृदय जो बनी रूहानी
राग रंग सुर ताल बिसर धवलता नाचे लट पे
बिम्ब ताकता दूजी आँखों अचरज ले ये मन…..
कठिन बहुत कह पाना क्या कुछ रीत रहा है
उजियारो होे चकचौंध गहन तम जीत रहा है
खड़ा निपट अंजान डगर तन मन हो स्तंभित
अंध पथिक सा टोह रहा आहट आस स्पंदन….
साँझ सवेरे पलक भांजते बेदम हो भाग रहे हैं
बावल मन सब वीतराग चुन चुन के ताग रहे हैं
मीठा खट्टा और तीत कसाय बटोर मन गागर
शहद घोल खारे जल में कर रहा प्रबल मंथन ….
प्रियंवदा अवस्थी
धन्यवाद सर
बहुत सुन्दर गीत !