राजनीति

मां भारती के सपूतों को मेरा सुझाव

संकट सिर पर मंडरा रहा है और तुम कहते हो सब ठीक है। हमारी सेना जवाब देने के लिए हमेशा तैयार है। हमारी सेना के पास आधुनिक हथियार हैं। हम एक दम सुरक्षित हैं। हमारे पास तक दुश्मन की परछाईं भी नहीं पहुंच सकती। दुश्मन हमशे बहुत कमजोर है। तुम्हें क्या लगता है? जब युद्ध होगा तो तुम्हें पाकिस्तानी और चीनी मारने के लिए आयेंगे और उन्हें तुम्हारे सैनिक सीमा पर ही नष्ट कर देंगे तथा तुम घर में टी.वी. के सामने बैठकर ताली बजा दोगे। ये तुम्हारा स्वपन है। इस स्वपन से बाहर निकलो और देखो तुम्हारे शत्रु तुम्हारे चारों ओर घूम रहे हैं और बड़ी ही चालाकी से तुम्हें घेर रहे हैं। क्या कभी सोचा है? जहां-जहां तुम्हारी धार्मिक नगरी हैं वहां-वहां पर ही तुम्हारे दुश्मनों की संख्या तैजी से बढ़ रही है और वो तुम्हारे बीच घुल मिल कर तुम्हारी हरकतों का जायजा ले रहे हैं। तुम्हारे बीच ही पल रहे हैं और फिर तुमको ही नष्ट करेंगे। ये वो दीमक है जो जिस लकड़ी में रहती है उसको ही खाकर एक दिन नष्ट कर देती है। वो घात लगाये बैठे हैं कब उनके देश के बाहर बैठे आका आदेश दें और कब वो तुम्हारे खून से होली खैंलें। कब तुम्हें निर्ममता से मौत के घाट उतार कर तुम्हारे बीवी, बच्चों को अनाथ करें। उनके साथ घिनौनी से घिनौनी हरकतें करें। तुम्हारी सम्पत्तियों को कब्जा लें। क्या भूल गये तुम इतिहास को क्या-क्या हुआ है तुम्हारे पूर्वजों के साथ कैसी-कैसी मौत दी है, इन दरिंदों ने महाराणा, गुरू गोविंद, चैहान और अनेकों वीरों को। क्या भूल गये उन खूनी खेलों को जो तुम्हारे साथ कई सौं वर्षों से खेले जा रहे हैं।

आज तुम्हारे शत्रुओं के हाथ इतने लम्बे हो चुके हैं कि ये तुम्हारी सरकार, तुम्हारी मीडिया, तुम्हारे कानून, तुम्हारी सेना तक के कान खींचने लगे हैं और इनके गुर्गे तुम्हारे देश के हर सिस्टम में घुस कर तुम्हारी ही जड़ों को खोद रहे हैं।

क्या तुम्हें ये लगता है जो सैनिक पर पत्थर मार रहा है वो तुम्हारा दुश्मन नहीं। क्या तुम्हें ये लगता है जो तुम्हारा तिरंगा फाड़ रहा है वो तुम्हारा मित्र है? क्या तुम्हें ये लगता है जो भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगा रहा है वो तुम्हारा भाई है? क्या तुम्हें ये लगता है जो तुम्हारे राम के सबूत मांग रहा है वो तुम्हारा भाई है? क्या तुम्हें ये लगता है जो आतंकी के मरने पर शौक मना रहा है वो तुम्हारा सखा है? क्या तुम्हें ये लगता है जो सैनिक पर पत्थर मारने वालों को भटके हुए नौजवान कहता है वो तुम्हारा हितैषी है। ये सभी तुम्हारे शत्रु हैं बाहरी आक्रमण से पहले ये ही तुमपर वार करेंगे।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो सेना पर पत्थर मारे।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो मेरा तिरंगा फाड़े।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो मेरे दुश्मन को पूजे।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो मेरे भारत को तोड़े।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो मेरी माता को खाये।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो अबला के आंचल फाड़े।

कैसे कह दूं उसको अपना, जो पाक के नारे गाये।

 

है भारत भूमि मेरी भी, क्यों ना रक्षा का भार उठाऊं मैं।

जो मेरी सेना को पत्थर मारे, क्यों ना उसपर चिल्लाऊं मैं।

अफगान, भूटान, पाकिस्तान और कितने टुकड़े करावाऊं मैं।

हां पाला है सांपों को मैंने, दंश भी मैंने झैले हैं।

मेरी ही छाती पर हरदम क्यों दुश्मन के मैले हैं।

जिनके 56 देश बसे हैं, वो मेरे घर क्यों आते हैं?

आकर मेरी धरती पर क्यों अपनी नाक कटाते हैं?

देश को असहिष्णु कहने वाले, क्यों अपने घर ना जाते हैं?

बहुत खिलाया कुत्तों को अब, गोली इनको दे मारो।

मां भारती की छाती पर पलते गद्दारों को दुतकारो।

 

डी. एस. पाल

धर्मवीर सिंह पाल

फिल्म राइटर्स एसोसिएशन मुंबई के नियमित सदस्य, हिन्दी उपन्यास "आतंक के विरुद्ध युद्ध" के लेखक, Touching Star Films दिल्ली में लेखक और गीतकार के रूप में कार्यरत,