मदद की हकदार
असलम बैंक से वापस आ रहा था । खाते में व्याज के रूप में मिली रकम लगभग नौ सौ रुपये उसने नगद निकलवा लिया था । ये वो रकम थी जो उसकी धार्मिक मान्यता के अनुसार ‘ हराम ‘ की थी । यह रकम वह खुद के लिए नहीं खर्च कर सकता था । इसे भिखारियों को दान करने के इरादे से वह चौराहे की तरफ बढ़ गया । चौराहे से पहले ही कई रेहड़ी वाले सड़क के किनारे पटरी पर तरह तरह की वस्तुएं बेच रहे थे । लगभग अस्सी वर्षीय एक गरीब बुढ़िया अपनी जीर्ण काया को सहारा दिए अपने सामने फलों की टोकरी रखे फल बेचने का प्रयास कर रही थी । उसकी दीनहीन अवस्था देखकर ही खरीददार नजदीक आकर वापस दूसरी दुकानों पर चले जाते । असलम ने कुछ सोचा और फिर उस बुढ़िया से जाकर बोला ” अम्मा ! ये टोकरी में रखे सारे फल का क्या लोगी ? ” बुढ़िया ने थोड़ी देर हिसाब लगाया और बोली ” बेटा ! वैसे तो ये सब मिलाकर नौ सौ रुपये से ज्यादा का है लेकिन अगर सब ले लोगे तो मैं भी घर जल्दी जाकर आराम कर लुंगी । बुखार में थोड़ी राहत मिल जाएगी । आपसे आठ सौ रुपये लुंगी । ”
असलम ने उसे एक हजार रुपये दिया और उससे फल लेकर मंदिर के सामने बैठे भिखारियों में बांट दिया । घर आकर उसने अपनी अम्मी को यह बताया । वह बोली ” पूरा पैसा भिखारियों में ही बांट देना चाहिए था । ”
असलम बोला ” आप सही कह रही हैं अम्मीजान ! लेकिन अब सभी भिखारी मदद पाने के काबिल नहीं रहे । मुझे वह बुढ़िया उनसे कहीं ज्यादा मदद की हकदार लगी । “
बहुत अच्छी लघुकथा !
सराहना के लिए धन्यवाद आदरणीय !
यह तो मदद और दान दोनों हो गया राज कुमार जी ,
आपने सही कहा है आदरणीय पांडेय जी ! दान भी किसी की मदद करने की नीयत से ही किया जाता है और असलम ने यही किया था । सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।
प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, असलम ने दान के कुपात्र-सुपात्र के प्रति जागरुकता दिखाते हुए बहुत नेक काम किया. समाज को जागरुकता का संदेश देने वाली, सटीक व सार्थक रचना के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! आपने सही फरमाया है । असलम ने दान के कुपात्र व सुपात्र के प्रति जागरूकता दिखाते हुए बहुत नेक काम किया है । बेहद सुंदर व सार्थक प्रतिक्रिया द्वारा उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद ।
राजकुमार भाई , लघु कथा में आप ने बहुत कुछ कह दिया . दान देना भी सोच समझ की बात होती है . एक तरफ भिखारी, कोई काम किये बगैर लोगों से पैसे ऐंठ रहे थे और दुसरी तरफ एक बुडिया इतनी उम्र में भी मिहनत करके रुजगार चला रही है . सो असलम ने नेक काम किया और बहुत समझदारी से .
आदरणीय भाईसाहब ! आपने इस लघुकथा की आत्मा का ही वर्णन कर दिया है । आपने बिल्कुल सही कहा है असलम ने उस बुढ़िया की मदद करके बड़ा ही नेक काम किया है । अति सुंदर प्रतिक्रिया के लिए धन्यवाद ।