माटी उगले सोना
” समर बाबू , आप और इतने वर्षों बाद ? गाँव की याद कैसे आ गयी आपको ? ” सरपंच ने पूछा
समर जो की पिछले कई वर्षो से शहर में रह रहा था , उसकी पुश्तैनी ज़मीन को सरपंच के निगरानी में छोड़कर | समय समय पर सरपंच समर को पैसे भिजवा दिया करते थे | कई बार उन्होंने समर से कहा भी , ” बेटा , मैं अब बूढ़ा हो चला हूँ , कभी तो अपनी ज़मीन को देख जाया करो | और अब आकर कुछ और व्यवस्था कर जाओ , मुझसे अब नहीं संभल रही | अब तो बीमार रहने लगा हूँ , जाने कब साँसे थम जाएँ | हो सके तो मुझ बूढ़े पर तरस खा कर एक बार आ जाओ |”
समर के बचपन में ही माता पिता गुज़र गए थे , तब से सरपंच ने ही उसको पाला पोसा था समर के पिता बहुत सारी ज़मीन छोड़ गए थे , पर समर का मन शहर में पढाई करने का था , सो सरपंच ने उसको वहां भेज दिया , और खुद उसकी ज़मीन का ध्यान रखने लगे | समय गुज़रता गया , समर ने शहर में शादी भी कर ली , अपना घर भी बसा लिया पर लौट कर गाँव नहीं आया |
रास्ते भर में समर अपने गांव के बारे में, और सरपंच जी के बारे में सोचता रहा | उसकी नम आँखों में पुरानी स्मृतियाँ तैर रहीं थी | गाड़ी एक दम से रुकी तो उसको होश आया , ” उसने वहां किसी आदमी से सरपंच जी के घर का रास्ता पूछा | ”
” वो , आप नए आये हो का बाबू साहब ! अरे आप कहीं समर बाबू तो नहीं , सरपंच जी कह रहे थे आप आओगे उनसे मिलने | अच्छा हुआ आप आ गए , उनकी तो सांसे अटक गयीं हैं , जल्दी आओ मेरे पीछे पीछे मैं लिए चलता हूँ | ”
समर बिना कुछ बोले उसके पीछे पीछे चल दिया | एक घर के पास वह रुक गया , सामने चापाई पर पर एक बुज़ुर्ग लेटा हुआ था , उसके आसपास कुछ लोग बैठे हुए थे |
समर के आते ही , उस बुज़ुर्ग ने पूछा , ” तू आ गया बेटा ? ” कुछ देर रुक कर फिर उन्होंने बोलना शुरू किया , ” इस बार तो तेरी ज़मीन ने सोना उगला है बेटा , सारा धान घर के अंदर रखवा दिया है ,इस बार मंडी नहीं जा पाया , पर इस साल लाखों मिलेंगे ….. और कहते ही उनकी साँसे रुक गयीं | ”
समर ने उनके हाथ पकड़ लिए , उनकी सख्त हथेलियों पर मिटटी आज भी लगी हुई थी | समर ने उनकी हथेलियों के बीच अपना चहेरा रख लिया और कहने लगा , ” बाबा , उठो न बाबा , मिटटी से सोना नहीं चाहिए बाबा , मुझे आप चाहिए …. ”
पर आज सोना उगलने वाले मिटटी सने हाथों को समर नहीं छोड़ पा रहा था |