परिवर्तन नियम है
एक जमीन थी हरियाली
पशु पक्षियों का बसेरा
जीव-जंतुओं का डेरा
वहाँ शांति थी सुकून था
लोग वहाँ आते थे घूमने
देखने सौंदर्य प्रकृति का
एक दिन अचानक वहाँ
मशीनों से होने लगी खुदाई
उस धरती को खोदा जाने लगा
जंतुओं के घरों को रोंदा जाने लगा
क्योंकि वहाँ फैक्ट्री लगनी थी
काम पूरा हुआ फैक्ट्री बन गई
उद्घाटन के समय उसके मालिक ने
एक-एक फूल दिया अतिथियों को
फूल मुरझा गया वो जल्द ही
सोचकर कि मेरा संसार तो
उजड़ ही गया है
इसी तरह तुम्हारा उजड़ेगा
प्रकृति का नियम है परिवर्तन
कभी यहाँ साँस लेने के लिए
लगाए जाएँगे वन शायद
क्योंकि मर रहे होगे तुम सब
बिना आॅक्सीजन के
या कभी यहाँ प्रकृति के प्रकोप से
नष्ट हो जाएगा तुम्हारा तामझाम
फिर हम उगेंगे यहाँ
बिखेरेंगे अपनी खुशबू पुनः
— नवीन कुमार जैन