गीतिका/ग़ज़ल

गज़ल

मैंने नामुनकिन चिज़ों को मुनकिन हैं कह दिया
यकीन ना था मुझे मगर मैंने यकीन है कह दिया

पुनम का चाँद पुनम की रात से ख़फा है मुझ से
मेरी महबुबा को मैंने ज्यादा हसीन है कह दिया

फुलों की रंगत में भी खलल पड़ने लगा है अब
मैने उसके होंठों को जब से रंगीन है कह दिया

सितारों के साथ बैठ कर मैने तारीफ की उसकी
चाँदनी ने भी मेरी बातों पर आमीन है कह दिया

किस्मत पर और भी ज्यादा नाज़ हो गया मुझे
जब से खुदा ने उसको मेरी यासीन है कह दिया

दिल-ए-राज़ कह दिया उसकी सख़ी ने आकाश
मेरी मोहब्बत से वो अब मुतमईन है कह दिया
आकाश राठोड

यासीन-कुरान शरीफ आयात
मुतमईन-प्रसन्न संतुष्ट

आकाश राठोड़

SSC लेखक गीतकार गज़ल कविता आकाश राठोड G/o राम मंदीर के पास मुर्ती सोयगांव जिला औरंगाबाद