हास्य व्यंग्य

व्यंग्य – अपुन के पास टाइम नहीं है

मैंने बस स्टैंड पर खड़े एक भाईसाहब से पूछा – क्या टाइम हुआ है ? मोबाईल पर व्यस्त और मुंह में दबाये हुए पान मसाला मस्त बोले –  भीडू ! अपुन के पास फोकट का टाइम नहीं है। जबाव के बाद मैं समझ गया भाईसाहब बड़े व्यस्त किस्म के प्राणी है। खैर ! बस आई और मैं बस में बैठकर पहुंच गया एक अजनबी शहर की हवा खाने। मैंने बस से उतरते ही एक चाय की टपरी वाले से पूछा – भाईसाहब ! तनिक यह पता तो बताईये जरा ! टपरी वाला बोला – पता जानने के पन्द्रह रूपये लगेंगे और पते पर पार्सल करने के पचास रूपये नकद लिये जायेंगे। बोलो मंजूर हो तो बाकि फोकट का अपुन के पास टाइम नहीं है। चल रे छोटू ! दो चाय टेबल नंबर दो पर रखकर आ फटाफट।
मैंने सोचकर विचार किया चलो ! इंसान के पास पता बताने के लिए भले ही टाइम न हो, पर हमारे प्रिय गूगल भाई के पास पता बताने के लिए टाइम ही टाइम है। मैंने गूगल पर पड़ताल की ओर पते पर पहुंच गया। मित्र से मिलकर वापस बस स्टैंड पर आया तो एक दृष्टिहीन सज्जन हर किसी से सड़क पार करवाने की विनति कर रहे थे। कोई भाई सड़क पार करवा दो ! पर उनकी तरफ कोई भाई ध्यान नहीं दे रहा था। शायद ! किसी के पास उनके लिए टाइम नहीं है। इधर, दूसरी ओर मैं देखता हूं दो गुंडों की लड़ाई हो रही है। लड़ाई का लुफ्त उठाने के लिए भीड़ का हुजूम उमड पड़ा है। जैसे गुड़ पर मक्खियां भिनभिनाती है, वैसे ही लोग भिनभिन रहे है। तमाशबीन हाथ में मोबाईल लेकर मजे से वीडियो उतार रहे है। मैं समझ गया लोग वीडियो लेने में व्यस्त है। इसलिए टाइम नहीं है। मैंने सज्जन को सड़क पार करवायी और घर आ गया।
लेकिन, मेरी जिज्ञासा का अभी अंत नहीं हुआ था। मेरी तहकीकात जारी थी। टाइम लोगों से इतना दूर क्यों भाग रहा है ? आखिर लोग इतने व्यस्त कैसे होते जा रहे है ? ऐसे कई सवाल खोपड़ी में बवाल कर रहे थे। यूं कहिए कि बवाल ही नहीं धमाल मचा रहे थे। हैरत तो यह जानकार हुई कि हमारे पड़ौस के जो युवा बेरोजगार की बीन बजाते मिलते थे, जब वे भी यह कहने लगे हमारी पास टाइम नहीं है। मैंने रात दिन खोज की तो मुझे पता चला कि लोगों के पास भले ही किसी अबला की अस्मत बचाने के लिए टाइम नहीं हो पर लूटने के लिए टाइम ही टाइम है। भले ही लोगों के पास वोट देने का टाइम नहीं हो पर सरकार को गालियां देने के लिए टाइम ही टाइम है। भले ही यार के पास अपने लंगोटिये यार के लिए टाइम न हो पर फेसबुक पर शीला सुलबुली से चैट करने के लिए टाइम ही टाइम है। भले नेताओं के पास विकास को जमीन पर अवतरित करने के लिए टाइम नहीं हो पर नारों की गंगा-यमुना प्रवाहित करने के लिए टाइम ही टाइम है। भले लोगों के पास बावन सेकंड के राष्ट्रगान के लिए टाइम न हो और चार घंटे की फिल्म देखने के लिए टाइम ही टाइम है।
आज जब देश का हर इंसान कह रहा है टाइम नहीं है तो आबादी इतनी है और यदि टाइम मिल जाये तो कितनी ? टाइम नहीं है तो इतने घोटाले हो रहे है और यदि टाइम मिल जाये तो कितनेे ? बच्चा पैदा होते ही चलना सीख रहा है। मां कहती है मेरे लाल घुटनों पर चल, बाल लीला तो कर। बेटा कहता है अपुन के पास टाइम नहीं है। यह बात सोलह आने सही है, पुलिस के पास रक्षा के लिए और शिक्षक के पास शिक्षा के लिए टाइम नहीं है।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com