शीत की बयार है
हाड़ कप-कपा रही, शीत की बयार है।
मेरे बाग में भी आज आ गया निखार है।।
शीत से भरी लहर, सभी को सता रही।
बाल-वृद्ध को स्वयं का खौफ भी बता रही।।
थोड़े दिन की बात है ठंड गुजर जाएगी।
गुनगुनी सी धूप थोड़े दिन ही भायेगी।।
हो जुनून तो चलो कंटकों की राह में।
कदमताल को करो, मंजिलों की चाह में।।
रास्तों में फासले हैं फासलों में रास्ते।
रुको नहीं, थको नहीं तुम स्वयं के वास्ते।।
टूटने न दीजिए डोर प्यार की सदा।
सब सुलझ ही जायेंगी उलझने यदाकदा ।।
राधे को तो शीत की बयार रास आ गयी।
नेह की तरंग में शरद ऋतु लुभा गई।।
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राधे गोपाल