कविता

हाल जस के तस बने है

“हाल जस के तस बने है”

साल कितने ही बदलते,
हाल जस के तस बने है।

करवटे कितनी बदलते,
ठण्ड से अब भी ठिठुरते।

साल फिर अब और आया,
धान फिर भी पक न पाया।

सोचा खुशियाँ ढ़ेर होगी,
दुःख कि रेखा ही न होगी।

दाल रोटी ही नहीं है,
खीर कि तो बात खोटी।

सो गयी सरसों लटककर.
गोल-इसब उड़ गया है।

लहसुन तो रो रही है,
पिली पिली हो रही है।

और मैथी की न पूछों,
देख इसको रो रहा हूँ।

गेहूं बाली आ सकी न,
काँपता कुआं खड़ा है।

डर रहा हूँ, खेत जाते,
खुश खबर कब कौन लाते।

साल चाहे यह नया है,
हाल तो एकदम वही है।

दिल पर पत्थर है पड़े पर,
मन में उम्मिदे है ज़िंदा।

होगी एक दिन फिर खुशहाली,
कूकेगी कोयल मतवाली।

अभी तो खुशियों के लाले पड़े है,
हाल जस के तस बने है।
______________”धाकड़” हरीश

हरीश कुमार धाकड़

गांव पोस्ट स्वरूपगंज, तहसील-छोटीसादड़ी, जिला-प्रतापगढ़ (राजस्थान)