चौपाई, शांत रस,
सुनहु सखा तुम भ्राता बाली, महाबली था हुआ कुचाली
नजर धरी परतिया मवाली, चहत वरण अनुजा बलशाली।
सखा सहज कहती यह नीती, पापी हने न पाप अनीति
राखहु मन सुग्रीव कस भीती, समय सहज धारहु परितीती।।
करम धरम की गति बड़ न्यारी, जो जस करे सो तस अधिकारी
विधि के हाथ न धरी कुठारी, काल कराल लहर विषकारी।।
जिन घर नीति सुलभ अनुसारी, ता गृह तके न दुःख बीमारी
जिनके महल न शिव पग धारी, तासो कौन सहाय मदारी।।
तजहु सखा डर अपने अयना, जाहि मिलाओ वा से नयना
पर उपकार परत मन चयना, करु विश्वास बोलती मयना।।
इतना करो जतन तुम ताता, होहिं अनाथ सहाय विधाता
लक्ष्मण अस बीरा विख्याता, होय तुहार विजय पुलकाता।।
‘गौतम’ अस मति जानो साथी, समर युध्द लड़ सौ सौ हाथी
अंकुश सबल बुद्धि बल थाती, कूप पड़त सेना अकुलाती।।
महातम मिश्र ‘गौतम’ गोरखपुरी