गीतिका/ग़ज़ल

भोजपुरी में एक ग़ज़ल – फागुन मा

गुलाल लै के बुलावेली भौजी फागुन मा ।
हजार रंग दिखावेली भौजी फागुन मा ।।

छनी है भांग वसारे बनी है ठंढाई ।
पिला के सबका नचावेली भौजी फागुन मा ।।

जवान छोरे इहाँ दुम दबा के भागेलें ।
नवा पलान बनावेली भौजी फागुन मा ।।

रगड़ गइल है कोई गाल पे करियवा रंग ।
बड़ा हो हल्ला मचावेली भौजी फागुन मा ।।

तुहार भैया तौ रह गइले आज तक पप्पू ।
दबा के आंख बतावेली भौजी फागुन मा ।।

लगा के कजरा चकल्लस करै दुआरे पर ।
खिला के गुझिया लुभावेली भौजी फागुन मा ।।

कहाँ पे रंग कहाँ पेंट और कहां कनई ।
बड़ा हिसाब लगावेली भौजी फागुन माँ ।।

बचल रहल उ जवन भइया जी के गुब्बारा ।
गुलबिया रंग भरावेली भउजी फागुन मा ।।

तमाम बाबा तो लागेला लहुरा देवर अब।
गजब के जुल्फी उड़ावेली भौजी फागुन मा ।।

जुगनिया बनि के उ नाचेली जब श रा रा रा ।
बुला के धक्का लगावेली भौजी फागुन में ।।

नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित

*नवीन मणि त्रिपाठी

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