भारत में ध्वस्त लाल सलाम
भाजपा ने एक बार फिर से चमत्कार कर दिया है। देश में एक बार फिर से मोदी लहर की धमक सुनाई दी है। और इस बार ये मोदी मैजिक पूर्वोत्तर भारत में दिखी है, जहाँ भाजपा ने कांग्रेस और वामदलों का सूपड़ा साफ कर खुद को सत्ता पर काबिज कर लिया है। और पूर्वोत्तर भारत में ऐसा पहली बार हो रहा है जब यहां के अधिकतर राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बेदखल हो गई है और पूरे पूर्वोत्तर भारत में भाजपा ने अपनी सरकार बना ली है। भारत के चुनावी इतिहास में यह भी पहली बार हो रहा है जब माकपानीत वाम दल सत्ता से बाहर हो गई है और देशभर से इनका सूपड़ा ही साफ हो गया है। ऐसे में त्रिपुरा की यह हार वामपंथी विचारधारा के लिए एक गंभीर खतरा है, क्य़ोंकि पीछले चंद वर्षों से देशभर में वामपंथ और राष्ट्रवाद की विचारधारा के बीच एक अघोषित अन्तर्द्वंद चल रहा है और ऐसे समय में त्रिपुरा का यह नतीजा वामपंथियो को निराश करनेवाला है क्योंकि वामपंथ का गढ़ कहे जानेवाले त्रिपुरा के नागरिकों ने वामपंथी विचारधारा को सिरे से खारिज कर दिया है और भाजपा समर्थित राष्ट्रवाद की विचारधारा पर अपना विश्वास जताया है। और यह हार वामपंथियों के लिए बड़ी हार है।
दरासल 60 सीटवाले त्रिपुरा विधानसभा के चुनाव में भाजपा ने 50 सीटों पर चुनाव लड़ा और बाकी के नौ सीट उसने अपने सहयोगी इंडीजेनस पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा के लिए छोड़ दी थी। और इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और उसकी गठबंधन पार्टी पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा ने 43 सीटें जीतकर पहली बार प्रदेश में सरकार बनाने का करिश्मा कर दिखाया है। राज्य में सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेतृत्व में वाममोर्चा बुरी तरह से हार गई है। भारतीय जनता पार्टी+ के 43 सीटों के मुकाबले वाममोर्चा को सिर्फ 16 सीटें ही मिल पाई हैं, जो वामपंथ के लिए एक बड़ी शिकस्त है। चूंकि त्रिपुरा में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की अगुवाई वाली वाम मोर्चा ही अब तक की सबसे बड़ी पार्टी थी और वह पीछले 25 सालों से सत्ता पर काबिज थी। इन सबके बीच वाममोर्चा के लिए जो सबसे अहम बात थी वह थे 20 सालों से त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे माणिक सरकार। जिन्हें देश का सबसे इमानदार मुख्यमंत्री होने का गौरव प्राप्त है। और यही कारण है कि विगत वर्षों में विपक्ष को कोई ऐसा नेता नहीं मिल सका जो माणिक सरकार से मुकाबला कर सके। पर विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने मोदी के सहारे यह अभुतपूर्व कारनामा कर दिखाया और मोदी बनाम माणिक के नारों से त्रिपुरा पर फतह हासिल कर ली।
वैसे वामदलों की हार और भाजपा की इस जीत का एक मुख्य कारण चुनाव में मतदाताओं का बढ़चढ़कर हिस्सा लेना भी है। दरासल इसबार त्रिपुरा के विधानसभा चुनाव में रेकॉर्ड 92 फीसदी से अधिक मतदान हुआ है। इस चुनाव प्रदेश के लगभग 92% मतदाताओं ने वोट डालकर देश के चुनावी इतिहास में एक रिकॉर्ड बना दिया था। जिसका परिणाम प्रदेश में एक बड़े बदलाव के रूप में सामने आया है। माणिक सरकार की यह विदाई देश की सत्ता पर काबिज पार्टियों के लिये भी एक कड़ा संदेश है। उन्हें अब समझना होगा कि देश की जनता पहले के मुकाबले अधिक जागरूक हो गई है और ऐसे में उन्हें जनता के हितों को ध्यान में रखकर कार्य करना होगा। अब देश की नीतियां जनता के हितों को ध्यान में रखकर बनानी होंगी। जनता को नजरंदाज कर कोई भी पार्टी अब सत्ता में बनी नहीं रह सकती फिर चाहे उनके पास कितने भी स्टार चेहरे क्यों न हो। क्योंकि देश की जनता अब पार्टी, नेता और सड़े-गले विचारधाराओं से उपर उठकर जनता को महत्व देनेवालों को चुन रही है। और 2014 के आम चुनाव के बाद से देशभर में चल रही सत्ता परिवर्तन की लहर उसी की एक झलक है।
हम उदाहरण के तौर पर त्रिपुरा की बात कह सकते हैं। वैसे त्रिपुरा उत्तरपूर्वी राज्यों में अपेक्षाकृत शांत माना जाने वाला राज्य रहा है। लेकिन पिछले दिनों राज्य में अकस्मात बढ़ी आपराधिक गतिविधियों ने यहां की जनता में कानून व्यवस्था के खिलाफ काफी रोष पैदा कर दिया था। इसके अलावा प्रदेश में उद्योग का भी भारी अभाव है। और यहां की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर आधारित है। पर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी बेरोजगार युवाओं की एक बड़ी फौज है जो बेरोजगारी से मुक्ति चाहती है। साथ ही लोग अब धर्म और जातपात की राजनीति से भी निजात पाना चाहते हैं और यही वजह है कि इसबार पूर्वोत्तर की जनता ने सत्ता परिवर्तन को तरजीह दी और व्यवस्था परिवर्तन के लिये वोट किया। जिसके फलस्वरूप पूर्वोत्तर भारत कांग्रेस के साथ-साथ वामपंथ से भी मुक्त हो गया। यहां एक बात ध्यान देने योग्य है कि भारत की जनता ने मोदी के कांग्रेस मुक्त भारत के आह्वान को काफी संजिदगी से लिया है। और अब त्रिपुरा की जनता ने भी मोदी के वामपंथ मुक्त त्रिपुरा के आह्वान को अपना पूर्ण समर्थन दिया। और इसका मुख्य कारण है उक्त पार्टियों का एक लंबे अर्से तक देश और प्रदेश की सत्ता में बने रहना और जनता से प्राप्त विशाल जनादेश के बावजूद जनता के हितों को नजरंदाज करना। एक लंबे समय से देश एवं प्रदेश की सत्ता पर काबिज उक्त पार्टियों ने सदैव ही जनता की आवश्यकताओं को नजरंदाज किया है और हर बार व्यक्ति तथा पार्टी को ही प्रमुखता दी है। और आज यह इसी का नतीजा है जो जनता ने मोदी पर अपना भरोसा जताते हुए उपरोक्त पार्टियों को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। पार्टी कार्यकर्ताओं की मनमानी और गुंडागर्दी को उनका जन्मसिद्ध अधिकार समझना आज दोनों ही पार्टियों को महंगा पड़ रहा है। फिर पूर्वोत्तर राज्यों के इस चुनाव परिणाम को प्रधानमंत्री मोदी के ‘न्यू इंडिया’ के विजन में जनता की भागीदारी के तौर पर भी देखा जा सकता है।
— मुकेश सिंह