कविता

धर्मयुद्ध नव भारत का

पूरी दुनिया नतमस्तक हो , माँ भारती का सम्मान करें
कहो कौन बनेगा नीलकंठ , जो हँस कर के विषपान करे

फिर बाल्मीक आ जाएंगे ,पहले कोई राजा राम मिले
ये धर्म युद्ध नव भारत का ,फिर सारथी न घनश्याम मिले

तो उठो सभी जन बन अर्जुन , गांडीव धरो संग्राम करो
ये समर अधूरा है देखो , मत अभी कोई विश्राम करो

क्यो आँख तरेरे ठाड़े हो , क्यो हाथ बाँध कर क्रुद्ध खड़े
अर्जुन बन लड़ कर विजयी भवः, केशव क्यो तेरा युद्ध लड़े

मानवता के हित हेतु ही , अरि दल का शोणित पान करे
कहो कौन बनेगा नील कंठ, जो हँस कर के विषपान करे ।

मनोज”मोजू”

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.