बचपन दे दे !
गाँव ! हमारा बचपन दे दे !
वह मिट्टी के सुघर खिलौने ।
वह काली बकरी के छौने ।
वह मेरे गुड्डे की शादी ,
रोती सी गुड़िया के गौने ।
जो करता था बात तोतली ,
वही सलोना आनन दे दे !
गाँव ! हमारा……………
खट्टे मीठे आम रसीले ।
सिंदूरी,धानी या पीले ।
दाग छोड़ते थे कपड़ो पर
फूट गये गर जामुन नीले।
लौटा दे कागज की नावे,
वही बरसता सावन दे दे !
गाँव !…………………
कंचा,तिक्का, लुका-छिपाई।
गिल्ली डंडा , छुवा छुवाई ।
चोर सिपाही,खेल कबड्डी,
भागम भाग, पकड़ पकड़ाई।
वह बचपन के सारे साधन,
घर दुवार वह आँगन दे दे !
गाँव ! हमारा ……………..
वह रातों की कथा कहानी।
कोई राजा ,कोई रानी ।
वही कल्पना सच लगती थी,
अब सब कुछ लगता बेमानी ।
यह बोझिल सा यौवन लेकर,
बचपन का चंचल तन दे दे !
गाँव ! हमारा…………..
——–© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी