बचपन
न हँसने की वज़ह थी,
न रोने का बहाना था।
सच में चंचल बचपन,
हर ग़म से बेगाना था।
गर्मी सर्दी हो बारिश हो,
घर में कहाँ ठिकाना था।
हर कोई उठा लेता गोद में,
सारा आलम दीवाना था।
आज भागता हूँ जमाने के पीछे,
कभी मेरे पैरों तले जमाना था।
न हँसने की वज़ह थी,
न रोने का बहाना था।
सच में चंचल बचपन,
हर ग़म से बेगाना था।
गर्मी सर्दी हो बारिश हो,
घर में कहाँ ठिकाना था।
हर कोई उठा लेता गोद में,
सारा आलम दीवाना था।
आज भागता हूँ जमाने के पीछे,
कभी मेरे पैरों तले जमाना था।