” तृष्णा नहीं घटे ” !!
बड़ी तपन ,
दिन ,
काटे नहीं कटे !!
आग बरसती ,
हवा गरम !
बहे पसीना ,
लाज शरम !
पलक उनींदी ,
अधर अधखुले ,
तृष्णा नहीं घटे !!
लंबे दिन हैं ,
रातें छोटी !
भूखे पेट न ,
भाती रोटी !
आलस पसरे ,
काज न सँवरे ,
चिंता नही पटे !!
छांव मिले बस ,
दो पल की हो !
निंदिया रानी ,
पलक चढ़ी हो!
शीतलता की ,
चाह सभी की ,
रटना यही रटे !!