गीत/नवगीत

“गीत”

क्या सुनाऊँ आप को जब आप दिल में आ बसे

नैन तो कबसे विकल थे चैन दिल में आ बसे…….. क्या सुनाऊँ आप को…..

देखना जी इस गली में और भी गलियाँ बहुत

रुक न जाना छोड़ राहें मोड़ भी मिलते बहुत

क्या भला फरियाद होगी यह गली अंधेर में

छाया न आती दिन बताने रैन दिल में आ बसे……क्या सुनाऊँ आप को…..

जब थे सूरज चाँद शर पर हम बहुत मशहूर थे

क्या दिवाली क्या धुलेटी दर्पण बहुत मगरूर थे

देख ली दुनिया बना के अब किधर परवेश है

क्या कहूँ दरवेश को उठ बैन दिल में आ बसे…… क्या सुनाऊँ आप को……

बैठ भी लो दो घड़ी घड़ियाँ कहाँ रुकती कभी

मोड़ना इसकी सुई को कब हुआ मुमकिन कभी

गर मुड़ी तो रोक लेगी वक्त के रफ़तार को

बंद कर लो आँख तुम बेचैन दिल में आ बसे…… क्या सुनाऊँ आप को……

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ