कविता

कुछ यादें

तुम्हारी कुछ पुरानी यादें
रह गयी है मेरे पास
हो सके तो लौट आओ
और ले जाओ इसे भी अपने साथ
बचे खुचे अहसास काफी है
इक दर्द के लिये
और ये जो यादे है
किसी नमक से कम नही
ये घाव पर मरहम नही
नमक का काम करते है
जैसे तुम्हारी यादे
मेरे जेहन मे घर करती है
तब दर्द और टिसते है
और मैं बिखर जाती हूँ
जैसे पतझड़ मे किसी पेड़ से गिर कर
पत्ते बिखर जाते है
सुनो अब देर ना लगाओ
आ जाओ और ले जाओ अपनी अमानत।
निवेदिता चतुर्वेदी’निव्या’

निवेदिता चतुर्वेदी

बी.एसी. शौक ---- लेखन पता --चेनारी ,सासाराम ,रोहतास ,बिहार , ८२११०४