राष्ट्र में अधिकांश भ्रष्टाचार फैला जा रहा है।
नित्य ही नैतिकता का नाश होता जा रहा है।।
मानवों में बढ़ रही कुछ ऐसी विषमता है।
शिष्टाचार शालीनता का नहीं कोई पता है।।
आतंकता अश्लीलता नित्य बढ़ती जा रही है।
घायल हमारे राष्ट्र की आत्मा होती जा रही है।।
गरिमा राष्ट्र की क्षण-क्षण घटती जा रही है।
अफसोस कि कोई सोचने को तैयार नहीं है।।
पूर्व में संस्कृति यहाँ की मानवों में देवत्व लाती।
शुभ-आचरण सद्भावनाऐं यह सब में जगाती।।
पर नहीं है ध्यान हमको राष्ट्रीय अपनत्व का है।
हो रहा पतन आज यह चारित्रिक स्तर का है।।
विश्ववन्द्या राष्ट्र का गौरव बढ़ाना है हमें।
तो•••
उच्च राष्ट्रीयता का ज्ञान समझना होगा हमें।।
चहुं ओर फैले भ्रष्टाचार का मिटाना होगा हमें।
नैतिकता राष्ट्रीयता का आदर्श बढ़ाना है हमें।।
तभी यह राष्ट्र फिर विश्वगुरू बन सकेगा।
और—
हर ओर विकास की पूर्णता को पा सकेगा।।
— शम्भु प्रसाद भट्ट “स्नेहिल”