ग़ज़ल – बच्चे विद्यालय तक पहुँचे
चेतन के आश्रय तक पहुँचे
परमानन्द निलय तक पहुँचे
रिश्ते नाते मोल लगाते
सारे ही विक्रय तक पहुँचे
वाद अभी लम्बित हैं कितने
कोई तो निर्णय तक पहुँचे
सोच समझ कर हाथ गहा जो
आखिर को परिणय तक पहुँचे
शिक्षा की ऐसी ज्योति जली
बच्चे विद्यालय तक पहुँचे
बीवी बच्चे रोते उनके
जो भी मदिरालय तक पहुँचे
मन वीणा झंकृत हो जाये
कोई साज हृदय तक पहुँचे
— नीलम सिंह