कविता

मेरे कृष्ण कन्हाई

काली अंधियारी रात को जन्म है जिसने पाया,
भादो कृष्ण अष्टमी को उस दिन रोहिणी नक्षत्र आया।
मोर मुकुट सिर धारण किया है कटि पे सुंदर लंगोट लिया है,
कानों में कुंडल विराजे  है हाथ में मुरली साजे है ।
माखन मिश्री चुराके जो खा जाता है,
ब्रज की हर बाला को फिर दीवाना कर जाता है।
गोपियों के संग जिसने मधुर किया है रास,
गोकुल में हुआ था अद्भूत जिसका निवास।
देवकी यशोदा जैसी पाई है जिसने दो-दो मैया,
नंदकिशोर नटवर नागर ऐसे हैं मेरे कन्हैया ।
सबके दुख को हरने वाला ग्वालो संग धूम मचाने वाला,
बंसी की धुन पर नचाने वाला मुरली मनोहर है नंदलाला ।
आओ मिलकर मनाएं जन्माष्टमी का त्योहार,
सजकर सुंदर दही हांडीयाँ भी है तैयार ।
राधा की भक्ति और कृष्णा की शक्ति से आए खुशियों की बहार,
मुरली मनोहर की कृपा से मिले सफलता अपार ।
जय श्री कृष्णा ।।।

शालू मिश्रा

शालू मिश्रा नोहर

पुत्री श्री विद्याधर मिश्रा लेखिका/अध्यापिका रा.बा.उ.प्रा.वि. गाँव- सराणा, आहोर (जिला-जालोर) मोबाइल- 9024370954 ईमेल - shalumishra6037@gmail.com