लघुकथा

संबंध

संबंध
रजनी और अमर दोनों कामकाजी दंपत्ति थे । रजनी के किसी से अवैध संबंध हैं इसी की आशंका जताते हुए अमर ने न्यायालय में तलाक का मुक़दमा दायर कर रखा था । अमर ने उसे अपना घर छोड़कर जाने के लिए कई बार कहा लेकिन वह हर बार उतनी ही ढिठाई से उसे जवाब देती ,” अमर ! बच्चों जैसी बातें मत करो ! जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आ जाता मैं तुम्हारी पत्नी हूँ , और तब तक कोई मुझे इस घर से नहीं निकाल सकता । ” अमर अपना सा मुँह लेकर खामोश हो जाता । रजनी और अशोक के संबंधों का उसके पास पुख्ता सबूत भी तो नहीं था जिसकी दरकार थी न्यायालय में ।
आज अमर दफ्तर से जल्दी घर आ गया था । रजनी अभी तक नहीं आई थी । हमेशा की तरह अमर अपने खाने के लिए होटल से भोजन पैक करवा कर लाया था । भोजन करने बैठा ही था कि रजनी ने दरवाजे पर दस्तक दी । उसके साथ ही अशोक भी खड़ा था रजनी के कंधे पर हाथ रखे हुए कुटिल मुस्कान के साथ ।
उन्हें इस हालत में देखते ही अमर के तनबदन में आग लग गई लेकिन उसने भी खुद को संयत रखते हुए कुटिल मुस्कान के साथ अशोक का स्वागत किया ,” अच्छा हुआ अशोक ! आज तुम दोनों साथ आ गए ! अब यह सीसीटीवी फुटेज अदालत में प्रस्तुत करके मैं इससे तलाक ले लूँगा ! “
” बेवकूफ आदमी ! तुझे कुछ नहीं पता ! कभी कभी समाचार भी देख लिया कर ! माननीय न्यायालय ने धारा 497 ही निरस्त कर दिया है । अब हमारे सम्बन्ध कानूनन अपराध नहीं रहे और तलाक का क्या है ? रजनी अब खुद तुम्हारे साथ नहीं रहना चाहती ! ” कहते हुए अशोक ने रजनी को अपनी बांहों में भींच लिया ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।