कविता

“कुंडलिया”

“कुंडलिया”

होता है दुख देखकर, क्योंकर बँधे परिंद।
पिजड़े के आगोश में, करो प्यार मत बिंद।।
करो प्यार मत बिंद, हिंद की जय जय बोलो।
दुखता इनका स्नेह, बंद दरवाजा खोलो।।
कह गौतम कविराय, खेत क्यूँ बावड़ बोता।
बहुत मुलायम घास, काश प्रिय पंछी होता।।


महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ