मैं बेटी हूँ
मैं बेटी हूँ ,
मैं दुहिता हूँ ,
मैं इस दुनिया में आयी हूँ ,
मै हूँ रचना परमेश्वर की
मैं प्यार प्रीत बन आई हूँ ।
मैं हूँ मान्या ,
मैं हूँ कन्या ,
उषा की किरण सरीखी हूं ,
आह्वान करो मेरा मन से
मैं ज्योतिर्मय बन आयी हूँ ।
मैं हूँ सुगन्ध,
मैं हूँ सुवास ,
मैं घर आँगन की बेली हूँ ,
हर कोना महका है मुझसे
मैं अन्तर्मन तक छाई हूँ ।
मै हूँ पुण्या ,
मैं हूँ सत्या ,
मैं ज्योति पुंज बन आयी हूँ ,
मै ओस बिन्दु प्रतिबिम्बित कर
सूरजमंडल पर छायी हूँ ।
मै हूँ लज्जा ,
मैं हूँ श्रद्धा ,
तुम मेरा जग में मान करो ,
यदि करता पुत्र पवित्र तुम्हें
मैं गंगा बनकर आयी हूँ ।
मैं हूँ तारा ,
मैं हूँ चंदा ,
मैं तम को दूर भगाती हूँ ,
बरसी हूं सूने आँगन में
मैं बदरी बनकर छाई हूँ ।
मैं हूँ शोभा,
मैं हूँ सीता ,
मैं रामायण में बसती हूँ ,
लो कितनी बार परीक्षा तुम
मैं निश्कलंक ही आयी हूँ ।
मैं हूँ कीर्ति,
मैं हूँ कांति ,
मैं दर्पण सी निर्मल उज्जवल ,
मत मलिन करो इस दर्पण को
मै स्फटिक मणि की नाई हूँ ।
मैं हूँ गीता ,
मैं द्रुपदसुता ,
मेरे हिस्से में दर्द बहुत ,
मैं पीड़ा में भी मुस्काती
मैं शांति संदेसा लायी हूँ ।
मैं हूँ अनन्त ,
मैं दिग्दिगन्त ,
मैं हूँ प्रकृति के कण कण में ,
मैं ही मधुमास बसंती हूँ
इस धरा भूमि पर छायी हूँ ।
जितनी
सुन्दरता है
जग में ,
सब मेरा रूप
ही दिखता है ,
माली ने पौध लगाया है ,
उपवन को उसने सींचा है ।
मैं सत्यम शिवम्
सुनदरम की ही ,
शक्ति रूप
बन आयी हूँ ,
मैं मानव की मानवता हूँ ,
मैं सृष्टि का अंकुर लायी हूँ ।
मैं बेटी हूँ ,
मैं दुहिता हूँ ,
मैं इस दुनिया में आयी हूँ,
मैं हूँ रचना परमेश्वर की
मैं प्यार प्रीत बन आयी हूँ ।
— डॉ नीलिमा मिश्रा