नारी पर दोहे
नारी पर दोहे —
दुष्ट चक्षुओं से बचने को ,परदा करती नारि।
नारी सुलभ संकोच ही , काफी इसे सँभारि।।
परदा कर लेवे लाख पर , रक्षित न होती नारि ।
अन्तरचरित शक्तिबल से ही ,रक्षा पाती है नारि ।।
सदाचरण का बल जहाँ ,घूँघट का क्या काम ।
कपड़े की दीवार क्या ,रोके है मन अभिराम ।।
पतिव्रता सीता रही , शत्रु वाटिका बीच ।
निश्कलंक सीता रही ,अग्नि परीक्षा बीच ।।
अतिप्रणय और अप्रणय ,दोनों को अनुचित जान ।
मध्यमभाव ही नेक है , इसे ही समुचित मान ।।
धर्म अर्थ और काम मोक्ष , सब में नारी सहायिका ।
नारी रूप है शक्ति का ,स्वर्ग- नर्क पथ दायिका ।।
डा० नीलिमा मिश्रा