बाल कहानी

बालकहानी – बच्चों को संता बनने दें

“बच्चे मन के सच्चे होते हैं, वह यदि किसी के लिए कुछ करते हैं तो मन से करते हैं इसलिए उनमें बचपन से ही व्यवहारिक और मानवता के संस्कार डालने चाहिए ताकि वह जरूरतमंदों की मदद के लिए आगे आ सकें । आज एक कहानी के माध्यम से मैं आपको बता रही हूं कि बच्चों को असल जिंदगी का संता बनने दें ताकि उनमें समता का भाव बना रहे ।”

दादी मुझे भूख लग रही है खाना दो” स्कूल से आते ही टिनटिन ने घर में शोर शुरू कर दिया, बस्ता सोफे पर और जूते किचिन के बाहर । 

“तुम्हारे लिए ही पराठे सेंक रही हूँ, जाओ कपड़े बदलो और समान मत फैलाना” दादी ने कहा ।

मुस्कुराते हुए टिनटिन किचिन से बाहर आया और सारा फैलाया हुआ समान अपनी जगह रख दिया । दादी ने थाली लगा दी, टीवी देखते देखते टिनटिन ने दस मिनट में ही खा ली । दादी अचंभे में थीं कि टिनटिन और इतनी जल्दी खाना ? फिर सोचा कि भूख लग रही होगी ज्यादा, टिफिन देखा तो वो भी खत्म, बिस्किट भी खत्म ।

अच्छा टिनटिन…. सुनो

नहीं दादी अभी नहीं, मुझे खेलने जाना है ।

थोड़ा सुनो तो, खाना तुम्ही ने खाया ना… कह ही रही थीं कि टिनटिन बल्ला लेकर पार्क में पहुँच गया ।

दूसरे दिन भी टिनटिन का यही हाल था, लेकिन तीसरे दिन टिनटिन खेलने नहीं गया बल्कि रुककर दादी से बात करने लगा.

अच्छा दादी, परसों आप क्या कह रही थीं ?

किस वक़्त ?

अरे मैं जब खेलने जा रहा था, तभी …

परसों की बात तुम्हें आज याद आ रही है …

हां वो… छोड़ो ये सब पता दादी आजकल मुझे बहुत ही भूख लगने लगी है । होता क्या है, कोई ना कोई टिफिन लेकर नहीं आता तो मेरे साथ खा लेता है ना ।

तुम्हारे साथ ? दादी ने अचंभे में पूंछा ।

हां दादी, मेरे साथ ।

लेकिन तुम्हारी तो आधी कक्षा के लड़कों से लड़ाई है फिर भी तुम्हारे साथ – दादी बात को भांप चुकी थीं ।

देखो दादी, आधी क्लास भी तो रहती है ना और मुझे कल से ज्यादा पराठे रख दिया करो, यदि किसी ने नहीं खाये तो मैं आधे इंटरवल में खा लूँगा और आधे लौटते समय बस में फिर घर आकर भी” टिनटिन ने आदेश देने वाली भाषा में कहा ।

फिर जरा में ही बच्चों की तरह कहानी सुनने की जिद करने लगा, दादी उसे हमेशा संता के मदद की कहानियां सुनाती थी तो इस बार भी वही सुना दी । दूसरों की मदद की प्रेरणा उसे दादी की कहानियों से ही मिलती रही है । इस बार भी जरूरतमंदों की मदद का सोचकर वह सो गया और थोड़ी देर बाद उठकर,

फिर टिनटिन खेलने चला गया, दादी समझ चुकी थीं कि टिनटिन किसी के लिए कुछ दिनों से खाना लेकर जा रहा है, जिसके चलते वह खुद भूखा रह जाता है । वर्ना टिनटिन ऐसा नहीं कि खुद ही खाने का बोले, टिफिन के दो पराठे तो वो बहुत मुश्किल से खाता है और आज तीन बार खाने को खुद से बोल रहा है ।

दूसरे दिन दादी ने चार पराठे टिफिन में रखे और बिना बताए इंटरवल में स्कूल पहुँच गयीं तो देखा कि टिनटिन सच में पराठे खा रहा है, आधा खाना खाकर टिफिन रख दिया और दोस्तों के साथ स्कूल ग्राउंड में खेलने लगा ।

दादी सोच विचार के बाद, घर लौट आयी कि टिनटिन सही कह रहा था, लेकिन उसका मन नहीं माना, दूसरे दिन वह फिर स्कूल गयी तब भी वही सब हुआ । कुछ दिन बीत गए लेकिन दादी को ये समझ नहीं आ रहा था कि आखिर स्कूल बस में खाना खाने के बाद, घर आकर टिनटिन तुरंत खाना मांगता है, अचानक से इतनी भूख? कहीं कीड़े तो नहीं पड़ गए पेट में ? शायद छुट्टी के समय कुछ होता है ।

टिनटिन के स्कूल से आने के बाद, दादी रोज़ उससे उसके खाने के बारे में पूंछती । दादी ने एक बार फिर स्कूल जाने का निर्णय किया लेकिन इसबार वह छुट्टी के समय स्कूल पहुँची । सड़क के दूसरी तरफ वह एक भिखारी के पास खड़ी हो गयी, टिनटिन स्कूल गेट से बाहर निकला और उसी तरफ आने लगा । दादी को लगा कि उसे टिनटिन ने देख लिया शायद, तो वह वहां से जल्दी निकली । इस बार भी दादी को सच पता नहीं लगा, घर आकर वह ये सोचती रही कि टिनटिन पूँछेगा तो क्या जबाब देगी लेकिन टिनटिन रोज़ की तरह मस्त मौला था क्योंकि उसने दादी को देखा ही नहीं था ।

दादी ने टिनटिन के माता पिता, जो दोनों की नौकरी करते थे जिसकी वजह से टिनटिन दादी के पास अलग शहर में रहता था” तो दादी ने उन्हें यह बात बताई तो वह भी चिंतित हो उठे कि स्कूल के बाहर टिनटिन क्यों निकला जबकि बस तो स्कूल के अंदर ही खड़ी होती है । उन लोगों ने एक बार फिर दादी को स्कूल जाने को कहा, कुछ दिन बाद दादी फिर जासूसी करने पहुंची ।

इस बार पेड़ के नीचे बैठे भिखारी के पीछे बनी दुकानों के पास जा खड़ी हुई । तब फिर छुट्टी के समय टिनटिन स्कूल से निकला और उस भिखारी के पास आया- बाबा ये लो आज का खाना, कल आऊँगा और भूख तो नहीं लगती बता दो तो ले आऊंगा ।”

नहीं बेटा, इतना ही बहुत है । अच्छे से सड़क पर किया करो, तुम्हारे स्कूल की बस गेट तक आ गयी जाओ अब तुम” भिखारी ने जबाब दिया ।

दादी की खुशी से आंखें छलक उठीं, कि उनका पोता अब असल जिंदगी का संता बनने की राह पर निकल चुका है । लेकिन अब उन्हें टिनटिन से पहले घर पहुँचना था तो उन्होंनें टैक्सी वाले को दुगने पैसे दिए और टिनटिन से पहले घर आकर किचिन में खाना बनाने लगीं । टिनटिन स्कूल से आया और रोज़ की तरह अपने कामों में लग गया । उस दिन के बाद दादी ने फिर कभी उससे टिफिन का जिक्र नहीं किया ।

जयति जैन “नूतन”

जयति जैन 'नूतन'

लेखिका परिचय युवा लेखिका, सामाजिक चिंतक- जयति जैन "नूतन" पति का नाम - इं. मोहित जैन । 1: जन्म - 01-01-1992 2: जन्म / जन्म स्थान - रानीपुर जिला झांसी 3: पता- जयति जैन "नूतन ", 441, सेक्टर 3 , शक्तिनगर भोपाल , पंचवटी मार्केट के पास ! pin code - 462024 4: ई-मेल- [email protected] 5: शिक्षा /व्यवसाय- डी. फार्मा , बी. फार्मा , एम. फार्मा ,/ फार्मासिस्ट , लेखिका 6: विधा - कहानी , लघुकथा , कविता, लेख , दोहे, मुक्तक, शायरी,व्यंग्य 7: प्रकाशित रचनाओं की संख्या- 750 से ज्यादा रचनायें समाचार पत्रों व पत्रिकाओ में प्रकाशित 8: एकल संग्रह - 1) वक़्त वक़्त की बात ( लघुकथा संग्रह, 20 पृष्ठ) 2) राष्ट्रभाषा औऱ समाज (32 पृष्ठ) 3) मिट्टी मेरे गांव की (बुन्देली संग्रह, 104 पृष्ठ) साझा काव्य संग्रह A- मधुकलश B- अनुबंध C- प्यारी बेटियाँ D- किताबमंच E- भारत के युवा कवि औऱ कवयित्रियाँ । F - काव्य स्पंदन पितृ विशेषांक G- समकालीन हिंदी कविता । H- साहित्य संगम संस्थान से प्रकाशित उत्कृष्ट रचनाओं का संकलन I- अनकहे एहसास J- वुमन आवाज महिला विषेषांक K- रेलनामा L- काव्य चेतना 9: सम्मान- - "श्रेष्ठ नवोदित रचनाकार सम्मान" से सम्मानित ! - अंतरा शब्द शक्ति सम्मान 2018 से सम्मानित ! - हिंदी सागर सम्मान - श्रेष्ठ युवा रचनाकार सम्मान - कागज़ दिल साहित्य सुमन सम्मान - वुमन आवाज़ अवार्ड 2018 - हिंदी लेखक सम्मान - भाषा सारथी सम्मान 10: अन्य उपलब्धि- बेबाक व स्वतंत्र लेखिका। हिंदी सागर त्रेमासिक पत्रिका में " अतिथि संपादक " (2018) 11:- लेखन का उद्देश्य- समाज में सकारात्मक बदलाव। 12:- रानीपुर (जिला झांसी उप्र) की पहली लेखिका जो प्रकाश में आयीं। 13:- लेखन के क्षेत्र में 2010 से अब तक ।