स्वामी अग्निवेश जी के नाम खुला पत्र
दिनांक 2 जनवरी, 2019 के हिंदुस्तान हिंदी समाचार के दिल्ली संस्करण में “लैंगिक समानता के लिए जुड़े हाथों से हाथ” शीर्षक से समाचार प्रकाशित हुआ जिसमें स्वामी अग्निवेश जी को केरल के तिरुवनंतपुरम में “वीमेन वाल” का हिस्सा बनते हुए दिखाया गया हैं। यह वीमेन वाल केरल में कम्युनिस्ट विचारकों द्वारा प्रायोजित थी। शबरीमाला मंदिर में रजस्वला महिलाओं को सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रवेश की अनुमति देने के विरोध में केरल के हिन्दुओं द्वारा गत दिनों “अयप्पा ज्योति” नाम से अभियान चलाया गया था। यह प्रदर्शन उसी अभियान के विरोध में था जिसमें प्रमुखता से भाग लेने वालों में केरल की मुस्लिम महिलाएं, ईसाई महिलाएं एवं कम्युनिस्ट महिलाएं थी।
स्वामी अग्निवेश जी आप अपने प्रेरणास्रोत्र वेदों के प्रकांड पंडित स्वामी दयानन्द जी को मानते है। जिन्होंने 19वीं शताब्दी में नारी जाति को सर्वप्रथम वेदों के पठन-पाठन, पुनर्विवाह का अधिकार दिया था एवं बाल-विवाह पर रोक लगाने का समर्थन किया था। स्वामी अग्निवेश आप शबरीमाला विवाद में कूद तो गए। मगर धर्म के नाम पर विशुद्ध राजनीती करते करते आप स्वामी दयानन्द के मंतव्य के विरुद्ध बयानबाजी कर गए। स्वामी दयानन्द रजस्वला के मंदिर-मस्जिद आदि स्थानों में प्रवेश का समर्थन नहीं करते। प्रमाण देखिये-
सत्यार्थ प्रकाश के 14वें समुल्लास में स्वामी दयानन्द क़ुरान की आयत की समीक्षा इस प्रकार से करते है-
क़ुरान की आयात-
३९-प्रश्न करते है तुझ से रजस्वला को कह वो अपवित्र है। पृथक् रहो ऋतु समय में उन के समीप मत जाओ जब तक कि वे पवित्र न हों। जब नहा लेवें उन के पास उस स्थान से जाओ खुदा ने आज्ञा दी।। तुम्हारी बीवियां तुम्हारे लिये खेतियां हैं बस जाओ जिस तरह चाहो अपने खेत में।। तुम को अल्लाह लगब (बेकार, व्यर्थ) शपथ में नहीं पकड़ता।।
-मं० १। सि० २। सू० २। आ० २२२। २२३। २२४।। -क़ुरान
स्वामी दयानन्द की समीक्षा-
(समीक्षक) जो यह रजस्वला का स्पर्श संग न करना लिखा है वह अच्छी बात है। परन्तु जो यह स्त्रियों को खेती के तुल्य लिखा और जैसा जिस तरह से चाहो जाओ यह मनुष्यों को विषयी करने का कारण है। जो खुदा बेकार शपथ पर नहीं पकड़ता तो सब झूठ बोलेंगे शपथ तोडें़गे। इस से खुदा झूठ का प्रवर्त्तक होगा।।३९।।
इस समीक्षा के प्रथम भाग में स्वामी दयानन्द रजस्वला के मंदिर आदि में प्रवेश पर असहमति जताते है तो दूसरे भाग में स्वामी दयानन्द इस्लाम में नारी को खेती समान मानने पर असहमति प्रकट करते हैं। खेदजनक बात यह है कि आपको हिन्दू महिलाओं की रजस्वला अवस्था में शबरीमाला मंदिर में प्रवेश को बहुत चिंता हैं। मगर इस्लाम में नारी के अधिकारों को लेकर आप कभी कुछ नहीं बोलते। बहुविवाह, तीन-तलाक, हलाला, मुता को लेकर आप कभी नहीं बोलते। क़ुरान में नारी के अधिकारों को पुरुष से निकृष्ट बताया गया है। युद्धबंदी नारी को लुटे हुए समान के समान प्रयोग करना बताया गया हैं। आप इन सभी विषयों पर कभी टिप्पणी नहीं करते।
प्रसिद्द बांग्लादेशी लेखिका तस्लीमा नसरीन को बंगाल में रहने नहीं दिया गया। तब भी उनेक समर्थन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की दुहाई आप कभी देने नहीं आये। इसी केरल के ईसाई पादरियों पर नन द्वारा यौन शोषण का आरोप लगाया गया तब भी आप मौन धारण किये हुए पाए गए। गत वर्ष जमैदा के नाम से एक मुस्लिम महिला ने मौलवी की भूमिका निभाई थी। तब कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों ने उनका पुरजोर विरोध किया था। उनके विरोध में अनेक फतवे भी जारी किये गए थे। तब भी आपका कोई बयान जमैदा के समर्थन में प्रकाशित नहीं हुआ।
इस प्रकार के आपके अनेक दोयम बयानों की मैं सप्रमाण समीक्षा कर सकता हूँ। स्वामी दयानन्द का एक विशेष गुण था। स्वामी जी अगर पौराणिक समाज को सम्बोधित कर रहे होते तो पुराणों की खूब समीक्षा करते और वेदों का मंडन करते थे। अगर मुसलमानों को सम्बोधित कर रहे होते थे तो इस्लाम की खूब तार्किक समीक्षा करते और वेदों का मंडन करते। ईसाई पादरियों को सम्बोधित करते हुए वह बाइबिल की वेद विरुद्ध संदेशों की आलोचना और वेदों के सत्य सन्देश के रूप में प्रचार करते थे। आपका उद्देश्य स्वामी दयानन्द जी के मंतव्य के बिलकुल विपरीत प्रतीत होताहैं। आप मुसलमानों/ईसाईयों के मंच पर जाकर वेद संगत कुछ सिद्धांतों का जो इस्लाम/बाइबिल में पाए जाते है, खूब वर्णन तो करते हैं। पर इस्लाम या ईसाइयत की वेद विरुद्ध आलोचना करने का आप कभी साहस नहीं करते। आपकी यह चतुराई हमसे छुपी नहीं हैं। इसलिए आपसे विनती हैं कि सन्यासी होने के नाते कृपया अपने सिद्धांतों पर अडिग रहें। आपका हर बयान हिन्दू समाज के विरोध में ही प्रकाशित न करें। जो वेद विरुद्ध हैं उसकी आलोचना करें जो वेद संगत है उसका प्रचार करें।