कविता

चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें

चलो कुंभ चलें चलो कुंभ चलें
पापों को धोयेगे संगम के तले
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।
गंगा में डुबकी लगा
मन की व्यथा साफ कर
मोक्ष को ही जायेगा
अब भगवान का ही जापकर
सब रोग दोष छूटेगे गंगे के तले ,
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।
प्रेम के बहार से वो
धर्म का प्रचार किया
जिंदगी के दोष सारे
कुन्भ में प्रवाह किया
सब लोगों के संगम से हम मिलेंगे गले,
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।
जो नफरतें मिटायेगा
वो प्रेम को बढायेगा
जीवन की सारी खुशी
इक पल में ही वो पायेगा
जो कुम्भ से छूटेगा फिर वो हाथ मले ,
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।
जब तेरे वश में ये रहेंगे
काम क्रोधी भावना
तब पूर्ण होंगी जिंदगी की
मनचाही कामना
नफरतो से भर गया मन तो दिल भी जले ,
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।
कुम्भ के दर्शन से
मैं कृतघ्ध हुआ
गंगे की फुहार से
मैं शुद्ध हुआ
यहाँ संतों के दुवार में भी प्रेम मिले ,
चलो कुंभ चले चलो कुंभ चलें ।














ओम नारायण कर्णधार

पिता - श्री सौखी लाल पता - ग्राम केवटरा , पोस्ट पतारा जिला - हमीरपुर , उत्तर प्रदेश पिन - 210505 मो. 7490877265 ईमेल - omnarayan774@gmail.com