उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग -30 )

ममता की परीक्षा ( भाग – 30 )

अपने चेहरे पर सूर्य के किरणों की तपिश महसूस कर गोपाल की नींद खुल गई । प्रतिदिन देर से सोने और देर तक सोने के आदि गोपाल को अपनी नींद में यह खलल नागवार गुजर रहा था लेकिन अपनी वस्तुस्थिति का भान होते ही उसकी सभी नाराजगी जाती रही । आँखें मसलते हुए वह खटिये पर ही उठ बैठा । खटिये पर बैठे बैठे ही उसने अपने चारों तरफ का निरीक्षण किया । रात में अंधेरे की वजह से वह वहाँ की स्थिति का सही अनुमान नहीं लगा सका था । मकान के सामने के खाली हिस्से के बाद ही झाड़ियों के बाद ही एक छोटा सा कच्चा तालाब जैसा लग रहा था जिसमें नाम मात्र का ही पानी शेष था । तालाब के एक किनारे पर पूरे गाँव भर का कूड़ा करकट पड़ा हुआ नजर आ रहा था । ऐसा महसूस हो रहा था जैसे गाँव वालों में उस खड्डे को पाटने की होड़ सी लगी हो । गाँव की सारी गंदगी कूड़े के रूप में उस खड्डे नुमा तालाब में मौजूद थी । दूर से ही ‘ कूड़ा – दर्शन ‘ करके गोपाल का मन खिन्न हो गया था । तभी उसे अपनी पेट में मरोड़ का अहसास हुआ । नींद खुलते ही उसे सीधे शौचालय जाने की आदत थी । वह भले ही हालातों के मद्देनजर इसे भूल गया था लेकिन पेट की गड़गड़ाहट ने उसे अपनी दिनचर्या का ध्यान दिला दिया । उसने मदद के लिए अपने चारों तरफ नजर दौड़ाई । मास्टर रामकिशुन अपने घर में ही बरामदे से लगे हुए एक बड़े से कमरे में कुछ बच्चों को पढ़ा रहे थे । बच्चों की उम्र देखकर गोपाल ने अंदाजा लगाया शायद दसवीं के विद्यार्थी हों ! उनके पहनावे को देखकर एक बारगी उसे हँसी आ गई । सामने दृश्य था भी वैसा ही । सामने दीवार से लगे एक तख्ते पर मास्टर रामकिशुन कुछ लिख कर समझा रहे थे वहीँ उनके सामने नीचे चिथड़ा हुए बोरों पर कुछ छात्र पालथी मारकर बैठे थे तो कोई उकड़ूं बैठकर अपनी जाँघों पर हाथ से बनी सफ़ेद पन्नों वाली कापी रखकर उसमें कुछ लिख रहे थे । कुछ छात्र ईधर उधर देखने में ही खासी दिलचस्पी दिखा रहे थे तो कुछ की निगाहें उसकी तरफ भी थीं । कुछ लड़कों ने मटमैली गंदी सी बनियान और उसके नीचे पायजामा पहन रखा था तो कुछ ने पायजामे की जगह बड़ी सी धारीदार कपड़ों की जाँघिया ही पहन रखा था । दो लड़कों ने बाकायदे राजकपूर स्टाइल के बाल रखे हुए थे और कमीज भी पहनी हुई थी । कुल मिलाकर गोपाल के लिए वह दृश्य बिलकुल नया व मजेदार था । खटिये से पैर नीचे उतार कर उसने समीप ही रखी चप्पल अपने पैरों में डाली और उठ खड़ा हुआ । उसकी नजरें साधना को तलाश रही थीं जिससे वह अपनी परेशानी कह पाता । लेकिन वह कहीं नजर नहीं आ रही थी । वह बरामदे से होते हुए आँगन में प्रवेश करनेवाले दरवाजे की तरफ बढ़ ही रहा था कि तभी उसे मास्टर रामकिशुन की आवाज सुनाई पड़ी ,” उठ गए बेटा ! बड़ी देर तक सोते रहे आज ! सूर्योदय के बाद सोना सेहत के लिए नुकसानदेह है । ”
” जी ! ” गोपाल का संक्षिप्त सा जवाब था । वह उस भिड़े हुए दरवाजे को खोलने ही वाला था कि मास्टर रामकिशुन की आवाज फिर से सुनाई पड़ी ,” अभी उधर नहीं जाना बेटा ! शायद साधना आंगन में नहा रही है नहीं तो हमारे घर का दरवाजा हमेशा खुला ही रहता है । ”
” ओह ! अच्छा हुआ काका आपने बता दिया ! ” कहकर वह बेमन से वापस आकर खटिये पर ही बैठ गया ।
अभी वह बैठा ही था कि उन्हीं पढनेवाले बच्चों में से एक लड़का बरामदे के बाहर ही पड़े हुए एक लोटे में पानी भरकर उसके सामने रख दिया । गोपाल ने सवालिया निगाहों से उसकी तरफ देखा । शायद उस लड़के ने गोपाल के मनोभावों को समझ लिया था । चेहरे पर गहरी मुस्कान लाते हुए उसने वहीँ से उस गंदे से तालाब के पार दूर नजर आ रहे गन्ने के खेतों की तरफ ईशारा किया ।
गोपाल उसके ईशारे को समझ कर मुस्कुरा पड़ा । मरता क्या न करता ? चल पड़ा हाथ में लोटा थामे । खेतों में काम करते किसान उसे अचरज भरी निगाहों से उसे एक बार देखते और फिर अपने काम में लग जाते। शायद अपने जिस्म पर मौजूद पतलून की वजह से गोपाल उन्हें किसी दूसरे ग्रह के वासी जैसा लग रहा था । खेतों की मेंड़ों के बीच से चलता हुआ गोपाल बस्ती से काफी दूर आ गया था तब कहीं जाकर वह पास ही नजर आनेवाले उस गन्ने के खेत तक पहुँच पाया था ।
साधना नहा धोकर घर से बाहर निकली । उसका ख्याल था गोपाल सोया होगा अभी तक लेकिन बाहर उसकी खटिया खाली देखकर उसने मास्टर रामकिशुन से ही पूछ लिया ,” बाबूजी ! ये गोपाल कहाँ गए ? ”
साधना को देखते ही रामकिशुन ने सभी बच्चों से मुखातिब होते हुए कहा ,” बच्चों ! आज की पढ़ाई समाप्त हुई ! कल थोड़ा ज्यादा पढ़ा देंगे । अब सब जाओ अपने अपने घर । संभल कर जाना सब ! ” और फिर कमरे से बाहर आकर साधना की बांह पकड़कर उसे बरामदे में बिछे खटिये पर बैठाकर खुद भी उसकी बगल में बैठते हुए बोले ,” बेटा ! आज तेरी माँ मुझे बहुत याद आ रही है । काश ! आज वह जिन्दा होती तो मुझे तुमसे वह सब नहीं पूछना पड़ता जो मैं तुमसे पूछना चाहता हूँ । मुझे माफ़ कर देना बेटा ! लेकिन ईश्वर गवाह है कि मैंने तुझे माँ और बाप दोनों ही बनकर पाला है । जब से तू आई है मेरे मन में एक सवाल काँटा बनकर चुभ रहा है लेकिन मुझे अवसर नहीं मिला था कि तुझसे कुछ पूछ सकूँ । इससे पहले कि वह लड़का वापस आ जाय बेटा ! सही सही बताना ! इस समय मुझे अपनी माँ समझ कर बात करना ‘ क्या वह लड़का यहाँ सिर्फ घूमने ही आया है ? ‘ ”
साधना के सामने बड़ा धर्मसंकट उपस्थित हो गया था । बचपन से आज तक उसने कभी अपने बाबूजी से झूठ बोलने का प्रयास भी नहीं किया था । अब क्या करे ? कुछ भी तो उसने इस स्थिति के बारे में नहीं सोच रखा था । क्या जवाब दे ? झूठ बोल नहीं सकती थी और यह पता नहीं था कि सच जानकर उसके बाबूजी की क्या प्रतिक्रिया रहेगी ? उसकी ख़ामोशी मास्टर रामकिशुन की बेचैनी बढ़ा रही थी ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।