लघुकथा

विकलांग मानसिकता

” पैदा हुआ तब कितना रोये थे तुम इसकी विकलांगता को देख कर …” मां आज बहुत कुछ कहना चाहती थी पर रूक गई।
” हाँ शायद तुम ठीक ही कहती थी शारीरिक विकलांगता की कमी इंसान दिमाग से पूरी कर सकता है पर मानसिक विकलांगता को दूर करने में मुझे कई साल लग गये ।” पिता आज ग्लानि महसूस कर रहे थे।
“हाँ इन सब में मेरे बेटे का बचपन निकल गया ,पर उसने पांवों से तूली पकड़ अपने जीवन का चित्र खुद ही बना लिया ।” मां अब कुछ कठोर भाव लिये बोल रही थी
” मेरे बेटे के बचपन और मेरी जवानी की कीमत इतनी सस्ती नहीं कि आपकी ग्लानी से चूक जाये ,अब मैं जीवन बगिया में कैक्टस नहीं पाल सकती हमने अकेले जीना सीख लिया है ।” दीवार पर लगा चित्र अपने पर इतरा रहा था आज तूली ने गजब का चित्रांकन किया माँ के मनोभाव और बेटे की पांवों से चलने वाली तूली का मेल जीवन को नये आकार दे सकता है माँ की कही ये पक्तिं सार्थक हो गई ।

अल्पना हर्ष

जन्मतिथी 24/6/1976 शिक्षा - एम फिल इतिहास ,एम .ए इतिहास ,समाजशास्त्र , बी. एड पिता श्री अशोक व्यास माता हेमलता व्यास पति डा. मनोज हर्ष प्रकाशित कृतियाँ - दीपशिखा, शब्द गंगा, अनकहे जज्बात (साझा काव्यसंंग्रह ) समाचारपत्रों मे लघुकथायें व कविताएँ प्रकाशित (लोकजंग, जनसेवा मेल, शिखर विजय, दैनिक सीमा किरण, नवप्रदेश , हमारा मैट्रौ इत्यादि में ) मोबाईल न. 9982109138 e.mail id - alpanaharsh0@gmail.com बीकानेर, राजस्थान