कुंडलिया
कुल्हण की रबड़ी सखे, और महकती चाय।
दूध मलाई मारि के, चखना चुस्की हाय।।
चखना चुस्की हाय, बहुत रसदार कड़ाही।
मुँह में मगही पान, गजब है गला सुराही।।
कह गौतम कविराय, न भूले यौवन हुल्लण।
सट जाते थे होठ, गर्म जब होते कुल्हण।।
— महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी