एहसास है तुम्हें….
किस भाव में निज ज़िन्दगी एहसास है तुम्हें,
उर में बहे पीड़ा-नदी एहसास है तुम्हें?
है योग्य युवा फिर भी फिरे यार! दर-ब-दर,
मिलती न उसको नौकरी एहसास है तुम्हें?
जिस काम में तल्लीन था मैं आठ वर्ष से,
क़िस्मत उसी से अब ठगी एहसास है तुम्हें?
आवारगी पसंद यहाँ हर कोई दिखे,
शर्मिन्दा अपनी सादगी एहसास है तुम्हें?
वैसे तो ‘सरस’ जोश हृदय में बहुत रहा,
भूला न बात होश की एहसास है तुम्हें?
— सतीश तिवारी ‘सरस’