तुम मुझे पहचानते हो खूब तो है,
देख भौंहें तानते हो खूब तो है!
मैं भले भाता नहीं तुमको मगर,
रार मुझसे ठानते हो खूब तो है!
साधना वर्षों की लेखन माँगता,
मन-ही-मन तुम मानते हो खूब तो है!
मैं न जानूँ बात लेखन की मगर,
तुम ही सब कुछ जानते हो खूब तो है!
लेने को मेरी परीक्षा तुम ‘सरस’,
मुझको जल सम छानते हो खूब तो है!