पुस्तक समीक्षा

व्यंग्य रचनाओं का रोचक संग्रह ” जीभ अनशन पर है “

नयी पीढ़ी की होनहार लेखिका समीक्षा तैलंग का प्रथम व्यंग्य संग्रह  “ जीभ अनशन पर है ” इन दिनों काफी चर्चा में है। देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में समीक्षा की रचनाएं निरंतर प्रकाशित हो रही हैं. लेखिका पत्रकार थी, इसलिए वे अपनी पारखी नजर से अपने आसपास के परिवेश की विसंगतियों, विद्रूपताओं को उजागर करके अनैतिक मानदंडों पर तीखे प्रहार करती है। इस व्यंग्य संग्रह की भूमिका बहुत ही सारगर्भित रूप से वरिष्ठ व्यंयकार श्री प्रेम जनमेजय, श्री सुभाष चंदर और श्री आलोक पुराणिक ने लिखी है।

जीभ अनशन पर है, कहत कबीर सुनो भई साधो, उपवास का हलफनामा, मुझे भी एक घर चाहिए, योगक्षेमं वहाम्यहं, वे आत्महंता हैं, मकड़जाल की चिंता किसे है,  राम अवतार और कास्टिंग काउच, ख़याली पुलाव, कहाँ मियाँ तानसेन, कहाँ क्लाउडसीडिंग जैसे रोचक व्यंग्य पढ़ने की जिज्ञासा को बढ़ाते हैं. इन व्यंग्य रचनाओं से लेखिका की गहरी दार्शनिकता दृष्टिगोचर होती है।

व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं। बाजारवाद, पर्यावरण, अनशन की वास्तविकता, चर्चाओं का बाजार, राष्ट्रभाषा हिंदी, रूपये का गिरना, भ्रष्टाचार, घोटाले, अफवाहों का बाजार, आभासी दुनिया, राजनीति, विज्ञापन और पुस्तक मेले की सच्चाई, नोटबंदी, मिलावट का कड़वा सच, बजट, बयानबाजी और जुमलेबाजी, सांस्कृतिक व

सामाजिक मूल्यों इन सब विषयों पर व्यंग्यकार ने अपनी कलम चलाई हैं। वे अपनी कलम से व्यंग्य के बंधे-बँधाये फ्रेम को तोड़ती है। लेखिका सरल शब्द, छोटे -छोटे वाक्य के साथ पुराने सन्दर्भों का बहुत उम्दा प्रयोग करके विसंगतियों पर तीव्र प्रहार करती है। आलोच्य कृति “ जीभ अनशन पर है” में कुल 45 व्यंग्य रचनाएं हैं। संग्रह की रचनाएं तिलमिला देती हैं और पाठकों को सोचने पर विवश करती हैं।

पुस्तक  : जीभ अनशन पर है

लेखिका : समीक्षा तैलंग

प्रकाशक : भावना प्रकाशन, 109-ए, पटपड़गंज, दिल्ली-110091

मूल्य   : 350 रूपए

पेज    : 135

दीपक गिरकर

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