बारिश और बिछोह
ये झड़ी नहीं है सावन की ,,, बस प्रीत विरह की कड़ियाँ है ।
ये पिया दरश को तरस रही ,,, नयनों की अश्रु लड़ियाँ हैं ।।
अंबर तल में विचर रहे ये
श्याम जलद के द्वीप नहीं
ये छाया हैं उन बिरहन के
जिनके प्रिय आज समीप नहीं
उनके सपनों की , प्यासों सी ,,, ये बुझी हुई फुलझड़ियाँ हैं ।
ये पिया दरश को तरस रही ,,, नयनों की अश्रु लड़ियाँ है ।।
पत्तों पे गिरते बुँदो की
ये झरझर मंगल राग नहीं
ये स्पंदन स्वर उन हृदयों की
जिन स्पर्श सुधा की पाग नहीं
ये मधुर मिलन की बेर नहीं ,,, दारुण बिछोह की घड़ियाँ हैं ।
ये पिया दरश को तरस रही ,,, नयनों की अश्रु लड़ियाँ हैं ।।
यह नहीं दामिनी की गर्जन
जिससे सिहर उठे मन प्राण
यह ‘समर’-लेखनी की रश्मि
जो पीड़ा को देते परिधान
शब्दों छंदो के धागे में ये ,,, ये गुँथी व्यथा मञ्जरियाँ हैं ।
ये पिया दरश को तरस रहीं ,,, नयनों की अश्रु लड़ियाँ हैं ।।
समर नाथ मिश्र