जीवन मंच
दुनिया जैसे मंच कठपुतली का
वो ऊपर बैठा सूत्रधार है
किसी को कभी हँसाता, कभी रुलाता
कभी बुलंदियों पर पहुँचता
कभी ख़ाक कर जाता है
दुनिया जैसे मंच कठपुतली का
कोई रूठता, कोई मनाता
यहां से उठाकर, वहां बैठाता
और कभी गिरा कर गले लगाता
कोई न जाने कब, किसकी डोर खिंच जानी है
जब तक है मंच, किरदार हमें निभानी है. .सुमन