राजनीति

आन बान शान स्वाभिमान का प्रतीक तिरंगा

अपने देश के प्रति वफ़ादार , ईमानदार होना हर हिंदुस्तानी का प्रथम कर्तव्य है। देशभक्ति की भावना जागृत होना तर्कसंगत, न्यायसंगत भी है। उसी तरह राष्ट्रध्वज के लिए उमंग, उत्साह, उल्लास का जुनूनी जज़्बा होना अत्यावश्यक है। हमारे देश के झंडे में तीन रंगों का सार्थक संमिश्रण होने के कारण इसे तिरंगा कहा जाता है। अंग्रजों के जुल्मों की जकड़नवाली जंजीरों से मुक्ति पाने के लिए हजारों हिंदुस्तानी उनसे उलझते– भिड़ते– लड़ते थे। कईयों ने अंग्रेजों से संघर्ष करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी, लेकिन तिरंगा पर आंच नहीं आने देते थे।

राष्ट्रध्वज बनाने में प्रमुख भूमिका रही है स्वाधीनता सेनानी पेंगाली वेंकैय्या (मछलीपट्‌नम्‌, दक्षिण भारत) की। उनके अथक परिश्रम व रचनात्मक कल्पनाशक्ति का सुंदर संगम है तिरंगा। उनका गुमनामी के अंधेरे में निधन हो चुका है। यह और बात है कि उनके सम्मान में डाक टिकट जारी हो चुका है। उन्होंने दो रंगों का ध्वज बनाकर गांधीजी को सुपूर्द किया था। लाल और हरा रंग हिंदू और मुस्लिम प्रतिनिधीत्व करनेवाली पटिट्‌यां थी। उस समय लाला हंसराज ने सुझाव दिया था, बीच में चर्खा रखने का। इसी तरह बीच में सफेद रंग रखने का एक और सझाव भी सभी ने पसंद किया। २२ जुलाई, १९४७ को संविधान सभा में तिरंगा जब राष्ट्रिय ध्वज के रूप में सर्वसम्मति से अपनाया गया तो उस में से चर्खे को हटाकर, अशोक स्तंभ के चक्र को जोड़ा गया। लाल रंग की जगह केसरी ने ले ली। ऊपर केसरी कलर त्याग और बलिदान को दर्शाता है। सफेद रंग सादगी और शांति का प्रतीकहै। हरा रंग समृद्धि और अमन– चैन का संदेश देता है।

आज हमें अपने घरों, कार्यालयों, कारखानों, दुकानों, कार आदि पर राष्ट्रध्वज लगाने का मौलिक अधिकार मिला है वो सब राजनेता, उद्दमी और सांसद रह चुके नविन जिंदल की जी तोड़ मेहनत का मीठा फल है। उन्होंने इस अधिकार को प्राप्त करने के लिए कानून के साथ लंबी लड़ाई लड़कर जीत हासिल की है। २३ जनवरी, २००४ में न्यायपालिका ने आम भारतीयों को भी तिरंगा लगाने की ऐतिहासिक मंजूरी दी थी, जोकि हमारे लिए गर्व, प्रतिष्ठावाली बात थी। हर हिंदुस्तानी को हृदय की गहराईयों से जिंदल जी का आभार मानना चाहिए।

१४१ फीट का सबसे ऊंचा तिरंगा ऊना (हिमाचल प्रदेश) के जिला मुख्यालय में शान से लहराया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज को यहां स्थापित करने के लिए इंडियन आईल कार्पोरेशन द्वारा १६ लाख की राशी खर्च की गई है। हमीरपुर जिला के तिरंगे की ऊंचाई १३३ फीट है। सोलन के झंडे की ऊंचाई १२२ फीट है। जहां तक ऊंचे ध्वज स्तंभ की बात है, वो ३६० फीट का सबसे लंबा भारत– पाक सीमा पर स्थित है, जिस पर तिरंगा फहराया जाता है। उसके बाद कोल्हापुर (महाराष्ट्र) में ३०० फीट ऊंचा ध्वज स्तंभ है जहां पर राष्ट्रध्वज लहराता है। इस पूरे परिसर को प्रेक्षनीय बनाने के लिए बाग– बगीचे का निर्माण किया गया है। तीन रंगों की आकर्षक रौशनी से परिसर की शोभा बढ़ाई गयी है।

जहाँ तक अपने तिरंगे के प्रति दीवानगी, संजीदगी का सवाल है, राम प्रसाद बैरवाट ( चाकसू, जयपुर ) का नाम सभी के लिए आदर्श उदाहरण है। देशभक्त राम प्रसाद से प्रभावित होकर एक दरोगा ने उन्हें अपने ठेले पर तिरंगा लगाने का सार्थक सुझाव दिया। वे १६ साल की उम्र से पहले ठेले और अब रिक्शे पर तिरंगा लगाते हैं। १९९३ में उनके रिक्शे पर तिरंगा लगा देखकर, उस समय वहां से अपने काफ़िले के साथ गुजर रहे तत्कालिन राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा ने गाड़ी रुकवाकर उन्हें दाद दी। फिर नाम, पता पूछकर उन्हें राष्ट्रपति भवन बुलाकर राम प्रसाद का आदर – सत्कार किया गया। लगभग २८ सालों से प्रातः ५ : ३० बजे झंडा फहराते हैं और सूरज डूबने से पहले वे विधिवत झंडा अवरोहण भी करते हैं। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित अनपढ़ राम प्रसाद उन पढ़े – लिखे लोगों के लिए एक सबक हैं जो राष्ट्रप्रेम के प्रति उंगलियां उठाते हैं।

आज की युवा पीढ़ी में से कई लोग इस बात से अनभिज्ञ होंगे कि १९६० में भारत – चीन के युद्ध के बाद फ़िल्म की समाप्ति पर राष्ट्रीय गीत को दिखाने की स्वस्थ परंपरा का शुभारंभ किया गया था। इसका मूल उद्देश्य था सैनिकों को सम्मान देना देशवासियों के दिलों में देशप्रेम की अलख जगाना। महज ५२ सेकंद तक चलनेवाले गीत के लिए दर्शक आदरपूर्वक खड़े होने में हिचकिचाते, शर्माते थे। ऐसी अवहेलना होते देख सरकार को कड़ा रुख अपनाते हुए, मजबूरीवश इस प्रथा को १९७५ में बंद करना पड़ा, जोकि दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय था।

अब साश्चर्यजनक बात यह है किस देश में बदलाव की बयार छायी हुई है। सकारात्मक सोचवालों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। देशहित के लिए जनभावना जागृत हो रही है। सुखदायक बात यह है कि सिनेमाघरों में राष्ट्रगान सुनाई दे रहा है, फ़िल्म के आरंभ होने से पहले। सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार श्रवणीय राष्ट्रगान दर्शकों को फिर से सुनाया जा रहा है। सभी जाति , धर्मों के बच्चे, बड़े -बुजुर्ग एक साथ आदरपूर्वक खड़े होकर मान – सम्मान देते हैं तो हरा देशप्रेमी का सिर गर्व से ऊंचा होता है।

इसी तरह का अद्‌भुत, अलौकिक, आनंददायक दृश्य देखने को मिलता है हैदराबाद (तेलंगाना) से १४५ कि. मी. की दूरीपर स्थित जमीकुमटा शहर में। वहां पर रोज़ाना १६ लाऊडस्पिकरों पर राष्ट्रगान बजाया जाता है। सभी नागरिक, राहगीर, दुकानदार, पुलिसकर्मी आदि अपना काम – धंधा छोड़कर, अपने स्थान पर सावधान की मुद्रा में खड़े होकर अभिवादन करते हैं। ऊंची मिसालवाला यह आदर्शवाद प्रशंसनीय, अभिनंदनीय, अनुकरणीय और वंदनीय भी है।

दुनिया भर में शायद ही कोई ऐसा देश होगा जहां के नागरिकों के मन में अपने राष्ट्रध्वज के लिए आस्था, आदर, प्रेमवाला दृष्टिकोण ना हो। हां, मान – सम्मान देने के तौर – तरीके में मामूली भिन्नता हो सकती है। कुल मिलाकर हर हिंदुस्तानी के लिए, भले वो किसी भी जाति, धर्म, संप्रदाय का क्यों ना हो, उनके लिए तिरंगे की अवहेलना, अनादर, तिरस्कार, विरोध करना नींदनीय, दंडनीय सामाजिक अपराध की श्रेणी में आता है।

— अशोक वाधवाणी

अशोक वाधवाणी

पेशे से कारोबारी। शौकिया लेखन। लेखन की शुरूआत दैनिक ' नवभारत ‘ , मुंबई ( २००७ ) से। एक आलेख और कई लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ नवभारत टाइम्स ‘, मुंबई में दो व्यंग्य प्रकाशित। त्रैमासिक पत्रिका ‘ कथाबिंब ‘, मुंबई में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ आज का आनंद ‘ , पुणे ( महाराष्ट्र ) और ‘ गर्दभराग ‘ ( उज्जैन, म. प्र. ) में कई व्यंग, तुकबंदी, पैरोड़ी प्रकाशित। दैनिक ‘ नवज्योति ‘ ( जयपुर, राजस्थान ) में दो लघुकथाएं प्रकाशित। दैनिक ‘ भास्कर ‘ के ‘ अहा! ज़िंदगी ‘ परिशिष्ट में संस्मरण और ‘ मधुरिमा ‘ में एक लघुकथा प्रकाशित। मासिक ‘ शुभ तारिका ‘, अम्बाला छावनी ( हरियाणा ) में व्यंग कहानी प्रकाशित। कोल्हापुर, महाराष्ट्र से प्रकाशित ‘ लोकमत समाचार ‘ में २००९ से २०१४ तक विभिन्न विधाओं में नियमित लेखन। मासिक ‘ सत्य की मशाल ‘, ( भोपाल, म. प्र. ) में चार लघुकथाएं प्रकाशित। जोधपुर, जयपुर, रायपुर, जबलपुर, नागपुर, दिल्ली शहरों से सिंधी समुदाय द्वारा प्रकाशित हिंदी पत्र – पत्रिकाओं में सतत लेखन। पता- ओम इमिटेशन ज्युलरी, सुरभि बार के सामने, निकट सिटी बस स्टैंड, पो : गांधी नगर – ४१६११९, जि : कोल्हापुर, महाराष्ट्र, मो : ९४२१२१६२८८, ईमेल ashok.wadhwani57@gmail.com