गुलाम बनाने की धारणा गलत है
नर का काम नही गुलाम बनाना
नभ को, धरा को
और इनके दरमिया किसी भी
अस्तित्व को
नभ, धरा तो स्वतंत्र है
अपने स्थापन काल से
बाँध सका न इसे कभी भी
किसी ने किसी काल मे
एक स़्थान भी नही तुम्हारा
पूरा व्योम मे
फिर क्यो पा जाना चाहते है?
इसे अपने अहंम मे
अस्मिता की बस्ती मे
ढुंढने निकलोगे तो पाओगे
एक छोटा कण जो मील सकता है
मिट्टी मे किसी भी क्षण
सब जानते हुए भी कौमी
लड़ाईयाँ तुम करवाते हो,
देश बटवारे और इंशानो के
विस्थापन मे लगे हो दिन-रात
गुलामी के घर मे कैद कर रखना
चाहते हो आजादी;वो घर जो कभी
किसी का न हुआ
जंजीर टूटती है गुलामी की
वक्त के मार से
गुलाम बनाने की सोच, धारणा गलत है
सर्वथा बल और छल के हत्थियार से
— बिनोद कुमार रजक