मुक्तक
“मुक्तक”
नौनिहाल का गजब रूप चंहका मन मोरा।
बहुत सलोने गात अघात देखि निज छोरा।
सुंदर-सुंदर हाथ साथ गूँजें किलकारी-
माँ की ममता के आँचल में उछरे पोरा।।
पोरी भी है साथ निहारे वीरन अपना।
बापू की आँखों ने देखा सच्चा सपना।
कुदरत के खलिहान का खुला पिटारा-
ठुमुक चाल बलराम कृष्ण है जग से न्यारा।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी