लघुकथा – ई पौध
दीनानाथ जी आज सुबह सुबह तैयार हो गए .अपना चश्मा ,झोला और छड़ी उठाकर धीरे धीरे से बिना आहट किये दरवाजा खोलते हुए ,घर मे किसी की नींद खराब न हो इसलिए चुपचाप धीरे से बाहर जाने लगे, तभी उनका पाँच वर्षीय पोता शिवांक उठकर आ गया “दादा जी ,आप कहाँ जा रहे हो?
दीनानाथ जी झोले में रखे पौधे की ओर इशारा करते हुए कहा,” पास वाले पार्क में ये पौधा लगाने जा रहा हूँ, आज तुम्हारी दादी की पुण्यतिथि है और आज के दिन मैं हर वर्ष एक पौधा उनके नाम का जरूर लगाता हूँ।
शिवांक ने तपाक से कहा, दादा जी ये पुण्यतिथि क्या होती है?
दादा जी समझाते हुए कहा ” बेटा जिस दिन कोई इंसान भगवान के घर जाता है ,उस दिन को पुण्यतिथि कहते हैं ,तुम्हारी दादी आज के दिन भगवान के यहाँ गई थी।
दादा जी मैं भी आपके साथ पार्क में चलूँगा।
दीनानाथ जी कुछ असमंजस की स्थिति में थे ,तभी शिवांक के मम्मी पापा भी आ गए, पिताजी आप अकेले नहीं जायेंगे आज सन्डे है बम सब की छुट्टी भी है हम सब साथ चलेंगे और मां की याद में सभी मिलकर पौधे लगायेंगें।
“अच्छा बेटा तुम सब साथ चलोगे खुशी से मुझे भी अच्छा लगेगा चलो सभी साथ चलते हैं।
अपने परिवार में संस्कारों की नई पौध लहलहाती देख कर उनकी आंखों में आंसू छलक आये।
— जयंती सिंह लोधी