गीतिका/ग़ज़ल

हिंदी ग़ज़ल : छंद दोहा

राष्ट्र एकता-शक्ति का, पंथ वरे मिल साथ।
पैर रखें भू पर छुएँ, नभ को अपने हाथ।।

अनुशासन का वरण कर, हों हम सब स्वाधीन।
मत निर्भर हों तंत्र पर, रखें उठाकर माथ।।

भेद-भाव को दें भुला, ऊँच न कोई नीच।
हम ही अपने दास हों, हम ही अपने नाथ।।

श्रम करने में शर्म क्यों?, क्यों न लिखें निज भाग्य?
बिन नागा नित स्वेद से, हितकर लेना बाथ।।

भय न शूल का जो करें, मिलें उन्हीं को फूल।
कंकर शंकर हो उन्हें, दिखलाते वे पाथ।।

संजीव सलिल बर्मा

संजीव वर्मा 'सलिल'

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