गीत – गालिब के गजल जैसी हूँ जब चाहे मुझे गुनगुना लेना
चाहे तनहाई में गा लेना मुझे
चाहे महफिल में सुना देना
गालिब के गजल जैसी हूँ
जब चाहे मुझे गुनगुना लेना
पतझड़ मे मुझको याद करना
बहारों में चाहे मुझे भुला देना
जागी हूँ सदियों से मैं मेरा नींदों से
रहा कभी कोई वास्ता ही नहीं
जो तुझसे होकर ना गुजरे ऐसा
मेरे जीवन का कोई रास्ता ही नहीं
जब जाना हो कभी दूर मुझसे
मुझे मौत की नींद तुम सुला देना
गालिब के गजल जैसी हूँ मैं
जब चाहे मुझे गुनगुना लेना
इंसा हूँ मैं कोई तसवीर नहीं हूँ
किसी विरहन की तकदीर नहीं हूँ
जब दिल चाहे मुझे अपना लेना
जब जी चाहे मुझे तुम ठुकरा देना
अवसर भी हूँ मैं दस्तूर भी हूँ
जब जी चाहे मौका भुना लेना
गालिब के गजल जैसी हूँ
जब चाहे मुझे गुनगुना लेना
— आरती त्रिपाठी