दोहा गीत
जो विपदा में साथ दे, और हरे सब पीर।
साथी सच्चा है वही, रहे सदा गंभीर।।
बातें हितकर जो करें, और मधुर व्यवहार।
उसे हितैषी जानिए, कहे प्रेम सुन यार।
मिलने पर हर्षे सदा, होवे आत्म विभोर।
चाहे हित जो सर्वदा,यार वही सिरमोर।
रहे सहायक दुःख में, ज्ञानी और सुधीर।
साथी सच्चा है वही, रहे सदा गंभीर।
करे अहित सोचे बुरा, रहिए उनसे दूर।
कहता हम परिवार के, हों विचार अति क्रूर।
काटे जड़ झूठी हॅसी, हो दिखावटी प्यार।
ऐसे ही नर-नारि से, भरा पड़ा संसार।
चोट करें चूके नहीं, खींचे पाप लकीर।
साथी सच्चा है वही, रहे सदा गंभीर।
जैसे!काया वास कर,काया खाता रोग।
शुभ कर्मों में है बने, बाधा लम्पट लोग।
जैसे औषधि वन उगे, करें व्याधियां दूर।
ऐसे ही मनप्रीत जन, देवें सुख भरपूर।
सज्जन होते हैं सदा, जैसे पावन नीर।
साथी सच्चा है वही, रहे सदा गंभीर।
— प्रेम सिंह राजावत प्रेम