गीत/नवगीत

सार_छंदाधारित_गीत – मौन विहग है कब से

ठूंठ वृक्ष है रहित पात से ,सन्नाटा है छाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है  इतराया ।।
नयन नीर भर खड़ा अकेला  ,साथी छूटे जबसे ।
किसको अपनी दशा दिखाए ,मौन विहग है कबसे ।
कौन यहाँ अब सुने हृदय की ,कैसा दृश्य दिखाया ।
 हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है  इतराया ।।
सुमन विहँसते देख तितलियाँ ,पायल  छनकाती थीं ।
और मधुप की मनुहारों से ,कलियां शरमाती थीं ।
झूमा करती हरित लताएं ,मन रहता भरमाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है  इतराया ।।
नही हुआ हूँ पर निराश  मैं ,मगर ज़रा उखड़ा हूँ ।
ढूंढ ही लूंगा उन अपनों को ,जिनसे मैं बिछड़ा हूँ ।
तृण चुन नीड़ बनाऊँ फिर से  ,मन विश्वास जगाया ।
हरियाली का चीर हरण कर ,पतझड़ है  इतराया ।।
— रीना गोयल

रीना गोयल

माता पिता -- श्रीओम प्रकाश बंसल ,श्रीमति सरोज बंसल पति -- श्री प्रदीप गोयल .... सफल व्यवसायी जन्म स्थान - सहारनपुर .....यू.पी. शिक्षा- बी .ऐ. आई .टी .आई. कटिंग &टेलरिंग निवास स्थान यमुनानगर (हरियाणा) रुचि-- विविध पुस्तकें पढने में रुचि,संगीत सुनना,गुनगुनाना, गज़ल पढना एंव लिखना पति व परिवार से सन्तुष्ट सरल ह्रदय ...आत्म निर्भर