सामाजिक

छुअन अत्याचार/ शारीरिक शोषण

छुअन अत्याचार एक जघन्य अपराध है और यह दिन प्रतिदिन बहुत बढ़ता जा रहा है। अगर हम आज भी नहीं जागे तो यह समस्या हमारे सामने एक दिन अपने भयावह रूप में आकर खड़ी हो जाएगी। आज के बदलते परिवेश में महिलाओं को चारों तरफ़ से आँख खोलकर चलने की ज़रूरत है क्योंकि आज की महिला सिर्फ़ घर तक ही सीमित नहीं हैं। वे भी घर की ज़रूरतों में पुरूषों का हाथ बँटाती हैं, उनके साथ कंधे से कंधां मिलाकर बराबर की भूमिका निभा रही हैं। स्त्रियाँ भी पुरूषों की तरह मानव हैं फिर उनके साथ यह अत्याचार क्यों? मैंने ज़्यादातर यह देखा है कि इसके पीछे कम पढ़े-लिखे लोग होते हैं या फिर ज़्यादा पैसे वाले। मध्यम वर्ग तो हर काम में पिसता आया है और अगर हालात ऐसे ही रहे तो भगवान ही मालिक है! समय रहते हमें इस विषय पर गौर अवश्य करना चाहिए। सरकार के साथ-साथ हमें भी इस तरफ़ सचेत रहने की आवश्यकता है। जिस पर अपने कुछ विचार देने की कोशिश कर रही हूँ। अगर आपको पसंद आएँ तो बताइएगा ज़रूर…….

१. सबसे पहले घर में ऐसा माहौल बनाया जाय कि बच्चे खुलकर बात कर सकें और उनको बैड टच और राइट टच से अवगत अवश्य कराया जाए।
२. इसकी रोकथाम के लिए स्कूलों में सरकार की ओर से एक अध्यापक-अध्यापिका नियुक्त किया जाना चाहिए, जो बच्चों को यह समझाए कि इससे कैसे दूर रहा जा सकता है? उससे अवगत कराए क्योंकि कई बार बच्चों के अंदर यह देखा गया है कि वह स्कूलों में ज़्यादा सीखना पसंद करते हैं।
३. सरकार को पोर्न बेवसाइटों पर पूरी तरह रोक लगा देनी चाहिए।
४. इंटरनेट पर आपत्तिजनक चीजें बहुत उपलब्ध हैं जिन पर सरकार को लगाम लगानी जरूरी है।
५. बचपन की गल्तियों को नज़रअंदाज़ न करें बल्कि सख़्ती से पेश आएँ।
६. सजा में देरी करने से भी आपराधिक प्रवृत्ति वाले लोगों का मनोबल बढ़ता है, इसलिए सरकार को तुरंत एक्शन लेना चाहिए।
७. स्त्री की छवि घर की एक महत्वपूर्ण ज़िम्मेदार सदस्य या पुरूषों के कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाली ऐसी कामकाजी महिला के तौर पर बनाए जाने की ज़रूरत है, जिसका सम्मान हर घर में होना चाहिए फिर चाहे वह घर में झाड़ू-पोचा करने वाली ही क्यों न हो।
८. बच्चा जब किशोरावस्था में पहुँचता है तो उसके मन में जो कौतूहल मचता है या जो प्रश्न उठते हैं उन्हें उसका उत्तर अवश्य दिया जाना चाहिए।
९. समाज की मानसिकता बदलने के लिए सरकार की तरफ़ से नुक्कड़ नाटकों का कार्यक्रम भी समय-समय पर चलाया जाना चाहिए, सार्वजनिक स्थानों पर।
१०. भारत के हर गाँव में, हर शहर में, झुग्गी-झोपड़ियों में, और हर न्यूज़ चैनल पर, इंटरनेट पर, ऐसी जगह पर जहाँ से यह अपराध जन्म लेता है वहाँ पर सरकार को निगरानी रखनी चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि ख़राब चीज़ बच्चों की थाली में न परोंसे बल्कि ग्यानवर्धक सामग्री ही परोंसें।
११. जब बच्चा जन्म लेता है और उसकी शिक्षा शुरू होती है तब हमें उसके पाठ्यक्रम में ‘सबका आदर करना चाहिए’ यह ज़रूर शामिल करना चाहिए।
१२. आपस में संवाद करते रहने से भी रिश्तों में मधुरता बनी रहती है इसलिए एक निश्चित समय पर घर के सभी सदस्य एक स्थान पर एकत्रित हों और अपने पूरे दिन का हाल एक-दूसरे से बयाँ करें।
१३. अपने बच्चों पर निगरानी रखें क्योंकि पूत के पाँव पालने में ही नज़र आ जाते हैं।
१४. घर में स्त्री का सम्मान करें न कि पाँव की जूती समझें।

मेरा यह मानना है कि अगर हर माता-पिता अपने आँख-कान खोल लें तो इस समस्या से छुटकारा पाया जा सकता है। सरकार को भी चाहिए कि वह भी अपने आँख-कान खोलकर काम करें न कि अपनी राजनीतिक चाल खेलती रहे। खैर! इस विषय पर चर्चा करने की बहुत ज़रूरत है जो समय-समय पर होती रहनी चाहिए।
अब तो आप समझ ही गए होंगे कि सरकार के साथ-साथ हमें भी आज कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है ताकि भारत के भविष्य को सुधारा जा सके। छुअन अत्याचार/ शारीरिक शोषण को जड़ से ख़त्म करने में तो अभी समय लगेगा परंतु शुरूआत तो की जा सकती है, ताकि आगे आने वाले समय में सब यहाँ शान से कह सकें कि “हम आज़ाद भारत के वासी हैं।”

— नूतन गर्ग (दिल्ली)

*नूतन गर्ग

दिल्ली निवासी एक मध्यम वर्गीय परिवार से। शिक्षा एम ०ए ,बी०एड०: प्रथम श्रेणी में, लेखन का शौक