कविता

नदियाँ

नदियाँ, नदियाँ, नदियाँ
क्यों दम तोड़ रही हैं आज नदियाँ
लडते-लडते हार गयीं हैं
बन गयी हैं नालियाँ
नदियाँ……

कल एक नदी मुझसे बोली,  सुनो
आदमी मे होतीं है बस खुदगर्जियाँ
जिसका जीवन उपवन बनाया हमने
वही मिटा रहे हैं आज हमारी हस्तियां
नदियाँ……

ये बचा है पानी जैसा कुछ यहाँ
ये पानी नही है
ये है हमारे आँसुओं की निशानियाँ
अब और न करो तुम मनमानियाँ
नदियाँ……

कल फिर सुनाई पडी
उन तीनों की वही सिसकियाँ
बुढियाँ, बच्चियाँ, नदियाँ
जैसे तीनों आपस मे हो सहेलियाँ
नदियाँ, नदियाँ…………।।

— दीपक तिवारी “दीप”

दीपक तिवारी "दीप"

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