इस काल खण्ड में
सदी के
इस काल खण्ड में
पूछा जाना चाहिए
कि क्यों लौट रहे हैं वे
जो आये थे दो जून की रोटी के लिए
और साथ ही यह भी
कि बनाये जा रहे हैं मोहरे
वो अभागे किसलिए ?
जिनकी दुनिया महज पेट तक है !
जब पल-पल बदल रहा है
मौत का आंकड़ा
और हम हो रहे हैं आश्वत
यह जानकर कि
शेष विश्व के मुकाबले
हुई है अभी चंद ही मौतें
हम उड़ा सकते हैं खिल्ली
और कोस सकते हैं
रामायण और महाभारत के प्रसारण को
भले ही उन्हें देखना
बाध्यता न हो
क्योंकि हमें होना है मुखर
हर हाल में ।
जब घरों में दुबके पड़े हैं
गाँव, शहर और कस्बे
तो किसी मंदिर या मरकज में इकठ्ठी हुई भीड़
जिनकी धार्मिक मान्यताएं हैं सर्वोपरि
उनके बारे में प्रश्न पूछना
कहलायेगा मजहबी उन्माद
क्योंकि धर्म हो गया है
कुछ और ही इन दिनों
इंसानियत को हाशिये पर धकेलकर ।
यह काल खण्ड है
विपरीत विचारधाराओं को
साथ लेकर चलने का है
बावजूद
तमाम असहमतियों के ।
जब हमारी प्राथमिकताएं होनी चाहिए
इस त्रासदी को परास्त करने की
उस समय में भी जरूरी है शायद
पूर्वाग्रहों से ग्रसित हो
राजा और बजीरों को कोसना
क्योंकि इसी से संतुष्ट होगा
हमारा अहम
कि हम विरोध में खड़े हुए सत्ता के
और हमने अपना सर्वश्रेष्ठ किया
और जो नहीं करेगा ये सब
इस दौर में वह
यकीनन ही ‘चारण’
कहा जाएगा !